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________________ प्रज्ञापनासूत्रे असंख्येयगुणाः, बादरवायुकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादरतेज:कायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, प्रत्येकशरीरवादरवनस्पतिकायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादर निगोदाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादर पृथिवीकायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादराकायिकाः अपयप्तिकाः असंख्येयगुणाः बादरवायुकायिका अपर्याप्तका असंख्येयगुणाः सूक्ष्म तेजःकायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, सूक्ष्म पृथिवीकायिकाः अपगुणा हैं (बायर निगोया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर निगोद के पर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं (बायर पुढवीकाइया पज्जन्तया असंखेज्जगुणा) बादर पृथ्वीकाय के पर्याप्तक असंख्यात गुणा हैं (बायर आउकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर अष्काय के पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (बायर वाउकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर वायुकाय के पर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं (बायर तेउकाइया अपज्जतया असंखेज्जगुणा) बादर तेजस्काय के अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं (पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं (बायर निगोया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर निगोद के अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं (बायर पुढवीकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं (बायर आउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर अष्कायिक अपर्याप्त असंख्यातगुण हैं (बायर वाउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) बादर वायुकायिक अपर्याप्त असंख्यातगुणा हैं ( सुहुम तेउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्यात १७८ पर्याप्त असं ज्यातगणा छे. (बायरआउकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) माहर अच्छायना पर्याप्त असं ज्यात गणा छे (बायरवाकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) महरयायुडायना पर्याप्त असण्यातला छे. (वायर ते उकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) माहरते४सायना अपर्याप्त असभ्याता छे. (पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) प्रत्ये शरीर माहर वनस्पतियिः अययति असंख्यात छे (बायर निगोया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) माहरनिगोहना अपर्याप्त असौंच्यातगा छे (बायरपुढवीकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) माहर पृथ्वीप्रायि अयर्याप्त असं ज्यातला छे (बायर आउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) माहर अच्छा अपर्याप्त असख्यातगा छे (बायदवा उकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ) माहर वायु अपर्याप्त असं ज्यातगा छे. (सुहुमतेउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) सूक्ष्म तेन्ससायिक अपर्याप्त असण्यातगा छे (सुहुम શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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