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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू.९ सूक्ष्मवादरपृथिवीकायिकाद्यल्पबहुत्वम् १७७ नाम्, बादर वनस्पतिकायिकानाम्, प्रत्येकशरीरवनस्पतिकायिकाम्, पादरनिगोदानाम्, बादरत्रसकायिकानाश्च पर्याप्तापर्याप्तकानाम् कतरे कतरेभ्योऽल्पा या, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः बादरतेजः कायिकाः पर्याप्तकाः, बादरत्रसकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादर सकायिकाः अपर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, प्रत्येकशरीरवादरवनस्पतिकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादर निगोदाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादरपृथिवीकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादराप्कायिकाः पर्याप्तकाः कायिकों (वायर वणस्सइकाइयाणं) बादर वनस्पतिकायिकों (पत्तेयसरीरयायरवणस्सइकाइया) प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिकों (वायर निगोयाणं) बादर निगोदों (बायर तसकाइयाणं) बादर वसकायिकों में (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्तों और अपर्याप्तों में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा या बहुया या तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा बायर तेउकाइया पजत्तया) सब से कम बादर तेजस्काय के पर्याप्तक हैं (बायर तसकाइया पन्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर त्रसकाय के पर्याप्सक असंख्यात गुणा हैं (वायर तसकाइथा अपजत्तया असंखेज गुणा) बादर त्रसकायिक अपर्याप्त असंख्यात गुणा हैं (पत्तयसरीर बायर वणस्सइकाइया पजत्तया असंखेज्जगुणा) प्रत्येक शरीर बाद वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्यात मा६२ ते०४२४॥यो। (बायरवाउकाइयाणं) ॥४२ वायुयो । (बायरवणस्सइकाइयाणं) मा६२ वनस्पति यि। (पत्तेयसरीरबायरवणप्सइकाइयाणं) प्रत्ये४ शरी२ मा४२ वनस्पतिथि। (बायरनिगोयाणं) ॥६२ निगाह (बायरतसकाइयाणं) ॥४२ स यिहीना (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्या तो भने २०५र्यासोमा (कयरे कयरेहिंतो) और छीनाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) २५८५, घ, तुल्य અગર તે વિશેષાધિક છે? _ (गोयमा !) गौतम ! (सव्वत्थोवा बायरतेउकाइयापज्जत्तया) माथी माछ। मा४२ ते४२४ायना पर्याप्त छ (बायरतसकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) २ सायना पर्याप्त मसण्यातमा छ (बायरतसकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) ४२ सय अपर्याप्त मसयातमा छ (पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) प्रत्ये४ शरी२ ॥४२११२५तियि ५यन्ति सस भ्यात छ. (बायरनिगोया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) मा४निगाहना पर्याप्त असण्यात छ. (बायरपुढवीकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) मा२पृथ्वीजयना प्र० २३ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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