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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ६ सू.१० असुरकुमारायुपपातनिरूपणम् १०६९ उपपद्यन्ते इतिवोध्यः 'ससं तंचेव' शेषं तच्चैव-नैरयिकोक्तवदेवावसेयम् , गौतमः पृच्छति 'जइ मनुस्से हितो उववति' यदा पृथिवीकायिकाः मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, तदा-किं समुच्छिममणुस्से हिंतो उववज्जंति, गब्भवतियमणुस्से हिंतो उववज्जंति ?' किं संमूच्छिममनुष्येभ्य उपपद्यन्ते ? किं वा गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते ? भगवान् आह-गोयमा ! हे गौतम ! 'दोहितो वि उवबज्नति' द्वाभ्यामपि संमूच्छिमगर्भव्युत्क्रान्तिकाभ्यां मनुष्यजातिभ्यां पृथिवीकायिका-उपपद्यन्ते, गौतमः पृच्छति 'जइ गम्भवकंतियमणुस्से हितो उववज्जति' यदा गर्भव्यु. त्क्रान्तिक मनुष्येभ्यः पृथिवीकायिका उपपद्यन्ते तदा 'किं कम्मभूमगगब्भवकंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जति ?' किं कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्येभ्यः पृथिवीकायिका उपपद्यन्ते ? किं वा 'अकम्मभूमगगम्भवकंतियमणुस्सेहितो उववज्जति' अकर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्येभ्यः पृथिवीकायिका उपपद्यन्ते ? विशेषता यह है कि पृथ्वीकायिक पर्याप्तकों से भी उत्पन्न होते हैं । और अपर्याप्तकों से भी उत्पन्न होते हैं । शेष सब कथन वही नारकों के समान है। गौतम-भगवन् ! पृथ्वीकायिक अगर मनुष्यों से उत्पन्न होते है ? तो क्या संमूर्छिम मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं अथवा गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? भगवान्-हे गौतम ! दोनों से ही उत्पन्न होते हैं । __ गौतम-भगवन् ! यदि गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। तो क्या कर्म भूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? या अकर्म भूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं भगवान् गौतम ! शेष जो कथन नैरयिकों के विषय में किया गया है, वही पृथ्वीकायिकों के संबंध में भी समझ लेना चाहिए । इस થાય છે. બાકીનું બધું કથન નારકેના સમાન છે. શ્રી ગૌતમસ્વામી –હે ભગવન્ પૃથ્વીકાયિક જે મનુષ્યથી ઉત્પન્ન થાય છે તે શું સંમઈિમ મનુષ્યોથી ઉત્પન્ન થાય છે અથવા ગર્ભજ મનુષ્યથી उत्पन्न थाय छ ? श्री लगवान् :--अन्नेथी उत्पन्न थाय छे. શ્રી ગૌતમસ્વામી –હે ભગવદ્ યદિ ગર્ભજ મનુષ્યથી ઉત્પન્ન થાય છે તે શું કર્મભૂમિજ ગભજ મનુષ્યથી ઉત્પન્ન થાય છે? અગર અકર્મભૂમિજ ગર્ભજ મનુષ્યથી ઉત્પન્ન થાય છે.? श्री भगवान :- गौतम ! शेषरे ४थन नैयिना विषयमा उस છે. તેજ પૃથ્વીકાચિકેના સમ્બન્ધમાં પણ સમજી લેવું જોઇએ. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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