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________________ १००४ केभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ? संमूच्छिम चतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, गर्भव्युत्क्रान्तिकचतुष्पदस्य लचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यदि संमूच्छिम चतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, किं पर्याप्त संमूच्छिम चतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्त कचतुष्पदस्थलचर संमूच्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! यदि चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं तो क्या संमूर्छिमों से उत्पन्न होते हैं अथवा गर्भजों से उत्पन्न होते हैं ? ( गोयमा !) हे गौतम ! (समुच्छिम च उप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितोऽवि उववज्जंति, गग्भवक्कंतिय चउप्पथलयरपंचिंदिय तिरिक्खजोणिएर्हितोऽवि उववज्जंति) संमूर्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रियतियेवों से भी उत्पन्न होते हैं और गर्भज चतुष्पद् स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्थचों से भी उत्पन्न होते हैं । प्रज्ञापनासूत्रे ( जइ संमुच्छिम चउप्पयथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति) यदि संमूर्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों से उत्पन्न होते हैं तो ( किं पज्जन्तगसंमुच्छिम चउपयथलयर पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्र्ज्जति) क्या पर्याप्त संमूर्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों से उत्पन्न होते हैं । (अपजत्तय चउप्पयथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणएहिंतो उबवज्जंति ?) अपर्याप्त चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं ? ( गोयमा !) हे गौतम! हिंतो उववज्जंति, गन्भवक्कंतिएहिंतो उववज्जंति ?) यहि यतुष्यः स्थायर પચેન્દ્રિય તિય ચેાથી ઉત્પન્ન થાય છે તે શું સ’મૂર્છાિમાથી ઉત્પન્ન થાય છે अथवा गर्ललेथी उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा ! ) हे गौतम! ( संमुच्छिम चउप्पय थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिं तो उववज्जंति, गब्भवक्कंतिय चउपय थलयर पंचिदियतिरिक्खजोगिए हिंतो उववज्जंति) संभूर्छिम तुष्यः स्थदायर यथेन्द्रिय તિય ચેાથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે અને ગર્ભજ ચતુષ્પદ્મ સ્થલચર પચેન્દ્રિય તિય ચામાંથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે. ( जइ संमुच्छमच उपयथलयर पंचिदियतिरिकख जोणिएहिंतो उवबज्जंति) यहि સ’મૂર્છાિમ ચતુષ્પદ સ્થલચર પાંચેન્દ્રિય તિય ચેાથી ઉત્પન્ન થાય છે તા ( कि पज्जत्तग समुच्छिम चउप्पयथलयर पंचिंदियतिरिक्ख जोणिएहिं तो उत्रवज्जंति ) શું પર્યાપ્ત સ’મૂર્છાિમ ચતુષ્પદ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિય ચેાથી ઉત્પન્ન થાય छे ? ( जपज्जत्तय चउपयथल यर पंचिदियतिरिक्ख जोणिएहि तो उववज्जंति ?) अपर्याप्त यतुष्यह स्थायर पचेन्द्रिय तिर्ययाथी उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा ! ) डे શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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