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________________ प्रबोधिनी टीका पद ६ सू.८ नैरथिकाणामेकसमयेनोपपातनिरूपणम् १००५ पर्याप्तकसंमूच्छिम चतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, नो अपर्याप्त संमूच्छिमचतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, यदि गर्भव्युत्क्रान्तिकचतुष्पदस्थलचर पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, किं संख्येयवर्षायुष्कगर्भव्युत्क्रान्तिकचतुष्पदस्थलचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, असंख्येयवर्षायुष्क गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पदस्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! संख्येयवर्षायुष्केभ्य उपपद्यन्ते नो असंख्येयवर्षायुकेभ्य उपपद्यन्ते यदि संख्येय वर्षायुष्कगर्भव्युत्क्रान्तिकचतुष्पदस्थलचर(पजत्तगसंमुच्छिम चउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबयज्जंति) पर्याप्त संमूर्छिमचतुष्पद्स्थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं (नो अपज्जत्तगसंमुच्छिमचउप्पयथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति) अपर्याप्त कसंमूर्छिमचतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रि यतियैचों से नहीं उत्पन्न होते । (जइ गन्भवक्कंतिय चउप्पयथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति) यदि गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रियतियैचों से उत्पन्न होते हैं (किं संखेजवासाज्यगन्भवक्कंतिय चउप्पयथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति) क्या संख्यात वर्ष की आयुवाले गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं (असंखेज्जवासा उयगन्भबक्कंतिय चउप्पयथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवज्जंति ?) असंख्यातवर्ष की आयु वाले गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं ? ( गोयमा !) हे गौतम ! (संखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जति ) संख्यातवर्ष की आयुवालों से गौतम ! (पज्जत्तग समुच्छिम चउपय थलयरपंचि दियतिरिक्खजोणिएहिं तो उबव जंति) पर्याप्त सभूर्छिम यतुष्यह स्थसयर पयेन्द्रिय तिर्यथोथी उत्पन्न थाय छे (नो अपज्जत्तग संमुच्छिम चउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति) અપર્યાપ્તક સ’મૂર્છાિમ ચતુષ્પદ્મ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિય ચેાથી નથી ઉત્પન્ન થતા ( जइ गव्भवक्कतिय चउप्पयथलयर पंचिदिद्यतिरिक्खजोणिएहि तो उवबઽત્તિ) યદિ ગભ`જ ચતુષ્પદ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિય ચેાથી ઉત્પન્ન થાય છે (किं संखेज्जवासाज्यगब्भवक्कंति यच उप्पयथल यर पंचि दियतिरिक्ख जोणिएहिं तो उवîત્તિ) શુ` સંખ્યાત વની આયુવાળા ગર્ભૂજ ચતુષ્પદ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય तिर्ययाथी उत्पन्न थाय छे (असंखेज्जवासाज्य गन्भवक्कंति यचउप्पयथ लयरपंचि दियतिरिक्खजोणिएहिं तो उववज्जंति ?) असं ध्यातवर्षनी आयुवामा गर्लभ यतुष्यह स्थायर यथेन्द्रिय तिर्यथोथी उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा) डे गौतम ! ( संखे શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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