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________________ प्रज्ञापनासूत्रे छाया —— नैरयिकाः : खलु भदन्त ! एक समयेन कियन्तः उपपद्यन्ते, गौतम ! जघन्येन एको वा, द्वौ वा त्रयो वा उत्कृष्टेन संख्येया वा, असंख्येया वा, उपपद्यन्ते, एवं यावत् अधः सप्तम्याम्, असुरकुमाराः खलु भदन्त ! एक समयेन कियन्तः उपपद्यन्ते ? गौतम ! जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येया वा, असंख्येया वा, एवं नागकुमाराः यावत् स्तनितकुमाराः अपि भणितव्याः पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त ! एक समयेन कियन्तः उपपद्यन्ते ૨૬ " एक समय द्वार - वक्तव्यता शब्दार्थ - ( नेरइया णं भंते! एगसमएणं केवइया उववज्जंति ?) हे भगवन् एक समय में कितने नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! जहणेणं एक्को वा दो बा तिन्नि वा ) हे गौतम ! कम से कम एक, दो तीन (उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उबवज्जंति) उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं ( एवं जाव अहेसत्तमाए) इसी प्रकार सातवी पृथ्वी तक समझ लेना (असुरकुमारा णं भंते ! एगसमएणं केवइया उबबज्जंति ? ) हे भगवन् ! असुरकुमार एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! जहणेणं एक्को वा, दो वा तिन्नि वा) हे गौतम ! कम से कम एक, दो, तीन (उक्कोसेणं संखेज्जा बा असंखेज्जा बा) उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात ( एवं नागकुमारा जाव धणिय कुमारा वि) इसी प्रकार नागकुमार यावत् स्तनित कुमार भी (भाणियच्चा) कहने चाहिए એક સમય દ્વાર—વક્તવ્યતા शब्दार्थ - (नेरइयाणं भंते! एगसमएणं केवइया उववज्जंति ?) हे भगवन् ! ये सभयभां डेंटला नैरयि उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा ! जहणणेणं एक्को वा दो वा तिन्निवा) हे गौतम! श्रोछामां भेोछा भेऊ, मे, मगर (उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति) उत्सृष्ट संध्यात अथवा असण्यात उत्पन्न थाय छे ( एवं जात्र अहे सत्तमा ए ) से प्रारे सातभी पृथ्वी सुधी (असुरकुमाराणं भंते! एग समएणं केवईया उत्रवज्जंति ?) हे भगवन् ! असुरकुमार श्रेष्ठ सभयभा डेंटला उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा ! जहणणं एक्को वा दो वा तिन्निवा) हे गौतम! मोठाभां भोछा भेड, मे, त्रा (उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति) हृष्ट संख्यात अथवा असं ज्यात ( एवं नागकुमारा जाव धणियकुमारा वि) से प्रहारे नागभार यावत् स्तनित कुमार पशु (भाणियव्वा) अहेवाले ये શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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