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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ६ सू. ६ नैरयिकादीनामेकसमयेनोपपातनिरूपणम् ९८७ गौतम ! अनुसमयम् अविरहितम् असंख्येया उपपद्यन्ते, एवं यावत् वायुकायिकाः वनस्पतिकायिकाः खलु भदन्त ! एक समयेन कियन्तः उपपद्यन्ते ? गौतम ! स्वस्थानोपपातिकं प्रतीत्य अनुसमयम् अविरहिता अनन्ताः उपपद्यन्ते ? परस्थानौपपातिकं प्रतीत्य अनुसमयम् अविरहिता असंख्येया उपपद्यन्ते, द्वीन्द्रियाः खलु भदन्त ! कियन्त एक समयेन उपपद्यन्ते ? गौतम ! जघन्येन एको वा द्वौ वा (पुढवीकाइया णं भंते ! एगसमएणं केवइया उवबज्जंति ?) हे भगवन् ! पृथिवीकायिक एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम! (अणुसमयं ) प्रत्येक समय (अविरहियं) बिना बिरह के (असंखेज्जा उवबज्जंति) असंख्यात उत्पन्न होते हैं (एवं जाव बाउकाइया) इसी प्रकार यावत् वायुकायिक (बणस्सइकाइया णं भंते ! एगसमएणं केवइया उववज्जंति ?) हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! ( सट्टाणुववाइयं पडुच्च अणुसमयं अविरहिया अनंता उववज्जंति) स्वस्थान में उपपात की अपेक्षा प्रतिसयम, बिना विरह के अनन्त वनस्पति जीव उत्पन्न होते रहते हैं (परद्वाणुववाइयं पच्च अणुसमयं अवरिहिया असंखेज्जा उववज्जंति) परस्थान में उपपात की अपेक्षा प्रतिसमय, विना विरह के असंख्यात वनस्पति जीव उतपन्न होते हैं ( इंदियाणं भंते! केवइया एगसमएणं उववज्जंति ?) हे भगवन् ! दीन्द्रिय एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! जहण्णेणं ( पुढविकाइयाणं भंते ! एग समएणं केवइया उववज्जति १) डे लगवन् ! पृथ्वीद्वायड गो समयमा डेंटला उत्पन्न थाय छे ? ( गोयमा !) डे गौतम ! ( अणुसमर्थ) प्रत्ये४ समय (अविरहियं) विरह विनाना (असंखेज्जा उववज्र्ज्जति) અસંખ્યાત ઉત્પન્ન થાય છે ( एवं जाव वाउकाइया) मे रीते यावत् वायुप्र४ि (वणस्सकाइयाणं भंते ! एग समएणं केवइया उववज्जंति ?) हे भगवन् ! वनस्पति अयि मे सभयभां डेंटला उत्यन्न थाय छे ? ( गोयमा !) हे गौतम! ( सट्टाणुववाइयं पडुच्च अणु समय अविरहिया अनंता उववज्जंति) स्वस्थानभां उपपातनी अपेक्षा प्रति समय, विना विरहुना अनंत वनस्पति व उत्पन्न थता रहे छे (परटुाणुव बाइ पडुच्च अणुसमयं अविरहिया असंखेज्जा उवबज्जंति) परस्थानमा ५પાતની અપેક્ષાએ પ્રતિ સમય, વિના વિરહના અસ`ખ્યાત વનસ્પતિ જીવ ઉત્પન્ન થાય છે. ( बेइंदियाणं भंते! केवइया एगसमएणं उबवज्जंति ? ) ड़े लगवन् ! द्वीन्द्रिय भे सभयभां डेंटला उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा ! जहणणेणं एगो वा दो वा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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