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________________ ९३० प्रज्ञापनासूत्रे स्त्रीणि । सप्तविमानशतानि, चतुर्षु अपि एतेषु ॥१४७॥ सामानिकसंग्रहणीगाथा चतुरशीतिः अशीतिः द्वासप्ततिः, सप्ततिश्च षष्टिश्च । पञ्चाशत् चत्वारिंशत् त्रिंशत् विंशतिः दशसहस्राणि ॥१४९॥ एते चैव आत्मरक्षाश्चतुर्गुणाः ॥सू० २७।। _____टीका -- अथ पर्याप्तापर्याप्तकब्रह्म लोकदेवानां स्थानादिकं प्ररूपयितुमाह -'कहिणं भंते ! बंभलोगदेवाणं' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कुत्र खलुकस्मिन् स्थले, ब्रह्मलोकदेवानाम् 'पज्जत्तापजत्ताणं' पर्याप्तापर्याप्तानाम् 'ठाणा पण्णत्ता' स्थानानि-स्थित्यपेक्षया स्वस्थानानि, प्रज्ञप्तानि-प्ररूपितानि सन्ति ? गाथार्थ-(बत्तीस अट्टवीसा बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा) बत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख (पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सा) पचास हजार, चालीस हजार, छह हजार, (सहस्त्रारे) सरस्रार में ॥१४६।। (आणयपाणयकप्पे) आनत-प्राणत कल्प में (चत्तारि सया) चार सौ (आरणच्चुए तिन्नि) आरण-अच्युत में तीन सौ (सत्तविमाणसयाई) सात सौ विमान (चउसु यि एएसु कप्पे) इन चारों कल्पों में ॥१४७॥ सामानिक संग्रहणी गाथा का अर्थ-(चउरासीई) चौरासी (असीई) अस्सी (बावत्तरी) बहत्तर (सत्तरी य) सत्तर (सट्ठी य) साठ (पन्ना) पचास (चत्तालीसा) चालीस (तीसा) तीस (बीसा) बीस (दस) दस (सहस्सा) हजार ॥१४८॥ (एए चेव आयरक्खा चउरगुणा) आत्मरक्षक इनसे चौगुने हैं ॥२७॥ टीकार्थ-अब ब्रह्मलोक आदि कल्पों के देवों के स्थान की प्ररूपणा की जाती है.. माथा-(बत्तीस अट्ठवीसा बारस अदुचउरो सयसहस्सो) त्रीस म, २५४यावीस तास. ॥२ 11, 18 an, या२ साप (पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सा) ५यास १२, यासीस २, ७ १२ (सहस्सारे) सखाराम ॥ १४६ ॥ (आणयपाणयकप्पे) २मानत प्राणत नमन। ४६५i (चत्तारि सया) यारसे। (आरणच्चुए तिन्नि) मा२९१-अच्युतमा त्रास (सत्त विमाणसयाई) सातसे। विमान (चउसु वि एएसु कप्पेसु) मा थारे ४८पामा ॥ १४७ ॥ सामानि साडी थाने। म (चउरासीई) योरासी (असीई) मेसी (बाबत्तरी) मांतर (सत्तरीय) सीते२ (सदीय) सा४ (पन्ना) ५यास (चत्तालीसा) यासीस (तीसा) त्रीस (बीसा) पीस (दस) १२० (सहरसा) हुन२ ॥ १४८ ॥ (एए चेव आयरक्खा चउग्गुणा) मात्म२४ तमनाथी या२ ॥छ॥२७॥ ટીકાર્થ-હવે બ્રહ્મલેક આદિ કપિના સ્થાનની પ્રરૂપણ કરાય છે શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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