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प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२२ ज्योतिष्कदेव स्थानानि
भवन्ति इत्याख्यातं तानि खलु विमानानि अर्द्धकपित्थक संस्थानसंस्थितानि सर्वस्फटिकमयानि, अभ्युद्गतोत्सृत प्रभासितानि इव विविधमणिकनकभक्तिचित्राणि वातोद्धूतविजय वैजयन्ती पताकाच्छत्रातिच्छत्रकलितानि, तुङ्गानि, गगनतलानुखिच्छिखराणि, जालान्तररत्नपञ्जरोन्मीलितवदमणिकनक स्तूपिकानि, विकसितशतपत्र पुण्डरीकतिलकरत्नार्द्धचन्द्रचित्राणि नानामणिमयदामालङ्कृतानि, अन्तोबहिश्च श्लक्ष्णानि तपनीय रुचिरवालुकाप्रस्तटानि, सुखस्पर्शानि देवों के (तिरियं ) तिर्छ (असंखेज्जा) असंख्यात ( जोइसियविमाणावास सयसहस्सा) लाख ज्योतिष्कों के विमानावास ( भवतीति मक्खायं) हैं, ऐसा कहा है । (ते णं विमाणा) वे विमान (अद्धकविगठाणसंठिया) आधे कवीठ के आकार के हैं (सव्वफलिहामया) पूर्णरूप से स्फटिकमय (अन्भुग्गयमूसियहसिया ) ऊपर उठे हुए और प्रभा से श्वेत (चिविहमणिकणगरयणभत्तिचित्ता) विविध मणियों कनक और रत्नों की छटा से चित्र-विचित्र (वाउयविजयवैजयंती पडागाछताइछत्तकलिया) हवा से उड़ती हुई विजय- बैजयन्ती - पताका - छत्र - और अतिछत्रों से युक्त (तुंगा ) ऊंचे (गगणतलमहिलंघमाणसिहरा ) आकाशतल को उल्लंघन करने वाले शिखरों से युक्त ( जालंतररयणपंजरुम्मिलियन्ब) जालियों में लगे हुए रत्न मानों पींजरे से बाहर निकाले गए हैं ( मणिरयणधूभियागा) मणियों तथा रत्नों की स्तृपिकाओं वाले (वियसिय सयवत्त पुंडरीया) जिनमें शतपत्र और पुण्डरीक कमल खिले हैं (तिलयरयणइढचंद चित्ता)
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( जोइसियमाणावास सयसहस्सा) साम જન્મ્યાતિષ્ઠ દેવાના વિમાનાવાસ ( भवतीति मक्खायं ) छे, खेभ धुं छे (तेणं विमाणा) ते विभानो (अद्धकविट्ठग संठाणसंठिया) अर्धा स्वीडना भारना छे (सव्वफलिहामया) पूर्ण ३५ २३टिभय (अब्भुग्गयमूसिय पहसिया ) उडवहार भने प्रमाथी श्वेत (विविह मणि कणगरयणभत्तिचित्ता) विविध भशियो १४ गने रत्नानी छटाथी चित्र विचित्र (वाउद्धूयविजयवे जयंतीपडागा छत्ताइ छत्तकलिया) स्वाथी उडती विनय-वैनયન્તી-પતાકા छत्र भने अतिछत्रोथी युक्त (तुंगा ) अंथे ( गगणतलमहि घमाणसिहरा ) आश तसने उस धन पुरवावाणी शिमरोथी युक्त ( जालंतर रयणपंजरुम्मिलियव्व) लजीयोमा नडेला रत्ना लो पिंन्शभांथी महार अढवाभा आव्यां होय (मणिरयण भियागा) भडियो तथा रत्नानी स्तूपायो वाणा (त्रियसिय सयपत्तपुंडरीया) प्रेमां शतपत्र भने धुंडरी उभसमिबेसां छे (तिलयरयण डूढचंदचित्ता) तिझने तथा रत्नभय अर्धयन्द्रोथी चित्र विचित्र
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧