SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 860
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૮૪૬ प्रज्ञापनासूत्रे " सश्रीकाणि, सुरूपानि प्रासादीयानि दर्शयानि, अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि, अत्र खल्लु ज्योतिष्काणां देवानां पर्याप्तापर्याप्तानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि त्रिष्वपिय लोकस्य असंख्येयभागे, तत्र खल बहवो ज्योतिष्का देवाः परिवन्ति, तद्यथा - बृहस्पतयः, चन्द्राः, सूर्याः, शुक्राः, शनैश्वराः, राहवः, धूमकेतवः बुधाः, अङ्गारकाः, तप्ततपनीय कनकवर्णाः, ये च ग्रहाः ज्योतिष्के चारं चरंति, केतवश्च गतिरतिकाः अष्टातिलकों तथा रत्नमय अधेचन्द्रों से चित्र-विचित्र (नाणामणिमयदामालंकिया) विविध मणिमय मालाओं से अलंकृत (अंतोबाहिं च सण्हा) अन्दर और बाहर चिकने (तवणिज्जरुहलवालुयपत्थडा) स्वर्ण की रुचि वालुका के प्रस्तर वाले (सुहफासा) सुखद स्पर्श वाले (सस्सिरीया) श्री से सम्पन्न (सुरुवा) सुन्दर रूप वाले (पासाइया) प्रसन्नताजनक ( दरिसणिज्जा ) दर्शनीय (अभिरुवा) अतिरमणीय ( पडिवा) अत्यन्त सुन्दर (एस्थ णं) यहाँ ( जोइसियाणं देवागं पज्जन्तापज्जन्तागं) पर्याप्त और अपर्याप्त ज्योतिष्क देवों के (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) कहे हैं (तिसु वि) तीनों अपेक्षाओं से भी (लोगस्स असंखेज्जइभागे) लोक के असंख्यातवें भाग में (तत्थ णं) वहां (बहवे ) बहु ( जोइसिया देवा) ज्योतिष्क देव (परिवसंति) निवास करते है (तं जहा) वे इस प्रकार (बहसई) बृहस्पति (चंदा) चन्द्र (सूरा) सूर्य (सुका) शुक (सणिच्छरा) शनैश्वर (राहू) राहु (धूमकेऊ) धूमकेतु) (बुधा) बुध (अंगारगा) मंगल (तत्ततवणिज्जकणगवन्ना) तप्त तपनीय स्वर्ण के समान वर्ण वाले (जो य) और जो (गहा) ग्रह (जोइसम्मि) ज्योतिष्क क्षेत्र में (चारं चरंति) (णाणामणिमयदामा किया) विविध भणिभय भाषाओोथी असत (अंतो बहि च सण्हा) अंडरथी मने महारथिया (तवणिज्जरुइलवालुया पत्थडा) सोना नी ३थिर वायुअ ना अस्तरवाणा (सुहफासा) सुभह स्पृशवाणा (पसाइया) प्रसन्नता ४१ (दरिसणिज्जा ) दर्शनीय (अभिरुवा) अति रमणीय ( पडिवा) अत्यन्त सुन्दर (एत्थ णं) अडि ( जोइसियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्त भने अपर्याप्त ज्योतिष्णु देवाना (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता ) ह्या छे (तिसुवि) त्र अपेक्षामाथी पशु (लोगस्स असंखेज्जइभागे) बोडना असध्यत भा लागभां (तत्थ णं) त्यां (बहवे ) धा ( जोइसिया देवा) ज्योतिष्णुदेव (परिवसंति) निवास पुरे छे (तं जड़ा) ते या प्रकारे (बहस्सई) मृहस्पति (चंदा) थन्द्र (सूरा) सूर्य (सुक्का) शु (सणिच्चर ) शनैश्चर ( राहु) राहु (धूमके उ ) धूभ हेतु (बुवा) (अंगारगा) मंगल ( तत्ततवणिजकणगवन्ना) तस तपनीय स्वर्णुना समान वर्षावाणा (जे य) भने ? (गहा) थड (जोइसम्मि) ज्योतिष्ड શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy