________________
प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२२ पिशाचदेवानां स्थानानि ८१५ अनीकानाम् सप्तानाम् अनीकाधिपतीनाम्, षोडशानाम्, आत्मरक्षयदेवसाहस्रीणाम्, अन्येषां च बहुनां दाक्षिणात्यानाम् वानव्यन्तराणां देवानाञ्च देवीनाश्च आधिपत्यं, यावद् विहरति, औत्तराहाणां पृच्छा ? गौतम यथैव दाक्षिणात्यानां वक्तव्यता तथैव औत्तराहाणामपि, नवरं मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरेण महाकालोऽत्र पिशाचेन्द्रः पिशाचराजः परिवसति, यावद् विहरति, एवं यथा पिशाचानां तथा सीणं) चार अग्रमहिषियों का (सपरिवाराणं) परिवार सहित का (तिण्हं परिसाणं) तीन परिषदों का (सत्तण्हं अणियाणं) सात अनीकों का (सत्तण्हं अणियाहिवईणं) सात अनीकाधिपतियों का (सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं) सोलह हजार आत्मरक्षक देवों का (अन्नेसिं च बहणं) अन्य भी बहुत-से (दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य) दक्षिण दिशा के वान-व्यन्तर देवों और देवियों का (आहेवचं जाव विहरइ) अधिपतित्व करता हुआ यावत् विचरता है।
(उत्तरिल्लाणं पुच्छा) उत्तर दिशा के पिशाच देवों के विषय में प्रश्न (गोयमा) हे गौतम ! (जहेव दाहिणिल्लाणं वत्तव्यता तहेव उत्तरिल्लाणं पि) जैसी दक्षिण दिशा वालों की वक्तव्यता वैसी ही उत्तर दिशा वालों की भी वक्तव्यता (णवरं) विशेष (मंदरस्स पव्व. यस्स उत्तरेणं) मंदर पर्वत के उत्तर में (महाकाले) महाकाल नामक (एस्थ) यहां (पिसायिंदे पिसायराया) पिशाचों का इन्द्र, पिशाचों का राजा (परिवसइ) निवास करता है (जाव विहरइ) यावत् विचरता है (एवं) इस प्रकार (जहा) जैसी (पिसायाणं) पिशाचों का (तहा) परिसाणं) ऋण परिषहोना (सत्तण्हं अणियाणं) सात मनीना (सत्तण्हं अणियाहिवईणं) सात मनीधिपतियाना (सोलसण्हं आयरक्खयदेवसाहस्सीणं) सोय ९०२ माम २२४ हेवाना (अन्नेसिं च बहूणं) wlon urg मा (दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं देवाण य देवीयाय) दक्षिण दिशाना -व्यत२ ३। मन हेवियोना (आहेवच्चं जाव विहरइ) मधिपतित्व ४२ता था वियरे छ
(उत्तरिल्लाणं पुच्छा) उत्त२ हशाना (५२५ हेवाना विषयमा प्रश्न (गोयमा !) 3 गौतम ? (जहेव दाहिणिल्लाणं वत्तव्वया तहेव उत्तरिल्लाणं पि) २वी દક્ષિણ દિશાવાળાઓની વક્તવ્યતા કહી છે તેવીજ ઉત્તર દિશાવાળાઓની પણ १तव्यता छ (नवरं) विशेष (मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं) म४२ पतनी उत्तरमा (महाकाले) मह। ४८ नामना (एत्थ) सही (पिसायिंदे पिसायराया) (पशाय। नन्द्र, पिशायना २१ (परिवसइ) निवास ४२ छ (जाव विहरइ) यावत पियरे छ (एव) मा ४२ (जहा) ओम (पिसायाणं) पिशायाना (तहा) तम
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧