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प्रज्ञापनासूत्रे चानां देवानां पर्याप्तापर्याप्तानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि, त्रिष्वपि लोकस्य असंख्ये. यभागे, तत्र खलु बहवो दाक्षिणात्याः पिशाचा देवाः परिवसन्ति, महद्धिकाः यथा औधिका यावद् विहरन्ति, कालः अत्र पिशाचेन्द्रः पिशाचराजः परिवसति, महद्धिको यावत् प्रभासमानः, स खलु- तत्र तिर्यगअसंख्येयानां भौमेयनगरावासशतसहस्राणां, चतमृणां सामानिकसाहस्रीणां, चतसृणाश्च अग्रमहिषीणाम्, सपरिवाराणाम्, तिमृणां पर्षदां, सप्तानाम् समुच्चय भवण वर्णन किया है वैसा यहां कह लेना चाहिए (जाव पडिरूवा) यावत् वे अतीव सुन्दर हैं (एत्थ णं) यहां (दाहिणिल्लाणं पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापजत्ताणं) पर्याप्त और अपर्याप्त दाक्षिणात्य पिशाच देवों के (ठाणा पण्णत्ता) स्थान कहे हैं (तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे) तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं (तत्थ णं) वहां (बहवे दाहिणिल्ला पिसाया देवा परिवसंति) बहुत-से दाक्षिणात्य पिशाच देव निवास करते हैं । (महिडिया) महर्धिक (जहा ओहिया) औधिक के समान (जाव विहरंति) यावत् विचरते हैं।
(काले एत्थ पिसायिंदे पिसायराया परिवसइ) काल नामक पिशचों का इन्द्र, पिशाचों का राजा यहां रहता है (महिडिया जाव पभासेमाणे) महद्धिक यावत् प्रकाशित करता हुआ (से गं) वह (तस्थ) वहां (तिरियमसंखेज्जागं भोमेज्जनयरावाससयसहस्साणं) तिर्छ असंख्यात लाख भौमेय नगरावासों का (चउण्हं सामाणिय साहस्सीणं) चार हजार सामानिक देवों का (चउण्ह य अग्गमहिमही 313 (जाव पडिरूवा) यावत् अत्यन्त सुन्दर छ मी (दाहिणिल्लाणं एत्थ णं पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्यात भने अपर्याप्त दक्षिणात्य पिशाय देवानी (ठाणा पण्णत्ता) स्थान हा छ (तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे) ऋणे अपेक्षामाथी सोना मन्यातमा मागमा छ (तत्थ णं) त्या (बहधे दाहिणिल्ला पिसाया देवा परिवसंति) घाक्षिणात्य पियव निवास ४२ छ (महिढिया) समृद्धिमान् (जहा ओहिया) भौपिना समान (जाव विहरंति) पियरे छ
(काले एत्थ पिसायिंदे पिसायराया परिवसइ) ४ नामना पिशायना छन्द्र, पिशायानी 01 माडी २ छ (महिइढिए जाव पभासेमाणे) भद्धि यावत् प्रशित ४२ता (से ण) ते (तत्थ) त्यां (तिरियमसंखेज्जाणं भोमेज्जनगरा वाससयसहस्साणं) तिर मसण्यात ८५ लोभेय नारावासोना (चउण्हं सामाणिय साहस्सीणं) या२ १२ सामानि वानी (चउण्हं य अग्गमहिसीणं) या२ मअभडिषीयाना (सपरिवाराणं) परिवार सहित (तिण्हं
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧