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________________ प्रज्ञापनासूत्रे भूतानामपि, यावद् गन्धर्वाणाम्, नवस्म इन्द्रेषु नानात्वं भणितव्यम्, अनेन विधिना भूतानां सुरूपप्रतिरूपौ, यक्षाणां पूर्णभद्रमाणिभद्रौ, राक्षसानां भीममहाभीमौ, किन्नराणां किन्नरकिं पुरुषौ, किंपुरुषाणां सत्पुरुषमहापुरुषौ, महोरगाणाम् अतिकायमहाकायौ, गन्धर्वाणां गीतरतिगीतयशसौ यावद् विहरतः, कालश्च, महाकालः, सुरूपः, प्रतिरूपः पूर्णभद्रश्च । तथा चैव माणिभद्रो भीमश्च तथा महाभीमः ॥१४१॥ किन्नरः किम्पुरुषः खलु सत्पुरुषः खलु तथा महापुरुषः, अस्तिवैसा (भूयाणं पि जाव गंधवाणं) भूतों का भी यावत् गन्धर्वो का वर्णन समझ लेना चाहिए (नवरं) विशेष (इंदेसु णाणत्तं) इन्द्रों में भिन्नता (भाणियब्वं) कहना चाहिए (इमेण विहिणा) इस विधि से (भूयाणं सुरूव पडिरूवा) भूतों के इन्द्र सुरूप और प्रतिरूप (जक्खाणं पुन्नभद्द माणिभद्दा) यक्षों के पूर्णभद्र और माणिभद्र (रक्खसाणं भीममहाभीमा) राक्षसों के भीम और महाभीम (किन्नराणं किन्नरकिंपुरिसा) किन्नरों के किन्नर और किम्पुरुष (किं पुरिसाणं सप्पुरिस महापुरिसा) किम्पुरुषों के सत्पुरुष और महापुरुष (महोरगाणं अइकायमहाकाया) महोरगों के अतिकाय और महाकाय (गंधव्वाणं गीयरइगीयजसा) गंधर्वो के गीतरति और गीतयश (जाव विहरइ) यावत् विचरता है। __ (काले य) काल और (महाकाले) महाकाल (सुरूवपडिरूवपुन्नभद्दे य) सुरूप, प्रतिरूप और पूर्णभद्र (तह चेव) तथा (माणिभद्दे) माणिभद्र (भीमे य) भीम (तहा) और (महाभीमे) महाभीम ॥१४१॥ (किन्नरकिंपुरिसे) किन्नर और किम्पुरुष (खलु) निश्चय (सप्पु(भूयाणंपि जाव गंधव्वाणं) भूताना ५ यावत् गन्धर्वाना वन सभ सेवा नये (नवरं) विशेष (इंदेसु णाणत्त) छन्द्रोमा लिन्नता (भाणियव्वं) डीन (इमेण बिहिणा) 20 विधियी (भूयाणं सुरूबपडिरूवा) भूतान छन्द्र सु३५ मने प्रति३५ (जक्खाणं पुण्यभद्दमाणि भद्दा) शुभद्र भने भाभद्र (रक्खसा णं भीम महाभीमा) राक्षसाना भीम भने भडमीम (किन्नराणं किन्नरकिंपुरिसा) निना नि२ भने (५३५ (किंपुरिसाणं सप्पुरिसमहापुरिसा) ५३षोना सत्पु३५ मने महा५३५ (महोरगाणं अइका पमहाकाया) भारगान मात४ाय मने माय (गंधव्याणं गीयरइ गीयजसा) गन्धर्वाना ila २ति अने गीतयश (जाव विहरइ) यावत् वियरे छ (कालेय) ४१६ (महाकाले) भास (सुरूवपडिरूप पुन्नभद्देय) सु३५, प्रति३५ भने पूर्ण मद्र (तहचेव) तथा (माणिभदेय) भाशुलद्र (भीमे य) भीम (तहा) भने (महाभीमे) महालीम ॥ १४१ ॥ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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