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प्रज्ञापनासूत्रे भवनवर्णकस्तथा भगितव्यो यावत् प्रतिरूपाणि, अत्र खलु पिशाचानां देवानां पर्याप्तापर्याप्तानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि, त्रिष्वपि लोकस्य असंख्येयभागे, तत्र बहवः पिशाचाः देवाः परिवसंति, महद्धिकाः, यथा औधिकाः यावद् विहरन्ति काल महाकालौ अत्र द्वौ पिशाचेन्द्रौ पिशाचराजानौ परिवसतः, महद्धिको महायुतिकौ यावद् विहरतः, कुत्र खलु भदन्त ! दक्षिणात्यानां पिशाचानां देवानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? कुत्र खलु भदन्त ! दाक्षिणात्याः पिशाचाः देवाः परि. गोलाकार हैं (जहा ओहिओ भवणवण्णओ तहा भाणियव्यो) जैसा भवनों का समुच्चय वर्णन कहा वैसा इनका भी कह लेना चाहिए । (जाव) यावत् (पडिरूवा) अतीव सुन्दर हैं।
(एत्थ णं) यहां (पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्त और अपर्याप्त पिशाच देवों के (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) कहे हैं (तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे) तीनों अपेक्षाओं से वे लोक के असंख्यातवें भाग में हैं (तत्थ) वहां (बहवे) बहुत (पिसाया देवा) पिशाच देव (परिवसंति) निवास करते हैं (महिड्डिया) महान् ऋद्धि के धारक (जहा ओहिया) समुच्चय वानव्यन्तरों के वर्णन के समान (जाव) यावत् (विहरंति) रहते हैं (कालमहाकाला) काल और महाकाल (इत्थ) इनमें (दुवे) दो (पिसाथिदा) पिशाचों के इन्द्र (पिसायरायाणो) पिशाचों के राजा (परिवसंति) रहते हैं (महिडिया महज्जुझ्या (जाव विहरंति) महद्धिक, महाद्युतिमान यावत् विचरते हैं। _ (कहिणं भंते ! दाहिणिल्लाणं पिसायाणं देवाणं ठाणा पण्णत्ता?) (जहा ओहिओ भवण वण्णओ तहा भाणियव्यो) २ अपनाना समुन्थ्ययनुन ४घुछेतमी ५ सम से (जाव)(पडिरूवा) यावत् मताव सुन्४२ छे.
(एत्थ णं) गडी (पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) पयो भने २५५पर्याप्त पिशाय हेवाना (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) ४i छ (तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे) त्राणे मपेक्षामाथी तो दाना मसच्यातमा लामो छ. (तत्थ) त्या (बहवे) घ (पिसाया देवा) (पाय हे (परिवसंति) निवास ४२ छे (महिड्ढिया) भडान् ३द्धिना पा२४ (जहा ओहिया) समुध्ययवान-व्य-तरोना वर्णननी समान (जाव) यावत् (विहरंति) २९ छ (कालमहाकाला) ४४ भने भड (इत्थ) तेसोमा (दुवे) मे (पिसायिंदा) पियान। छन्द्र (पिसायरायणो) पियानात (परिखसंति) २९ छे. (महिढिया महज्जुइया जाव विहरंति) મહદ્ધિક, મહાતિમાન યાવત્ વિચરે છે
(कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं पिसायाणं देवाणं ठाणा पण्णत्ता ?) भगवन्
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧