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________________ ७२६ प्रज्ञापनासने कपालानाम्, पश्चानाम् अग्रमहिषीणाम् सपरिवाराणाम्, तिसणां पर्षदाम्, सप्तानाम् अनीकानाम्, सप्तानाम् अनीकाधिपतीनाम् चतसृणाश्च षष्टीनाम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणाम्, अन्येषाश्च बहूनाम् औत्तराहाणाम् अमुरकुमाराणाम् देवानाश्च देवीनाच आधिपत्यम्, पौरपत्यम् कुर्वन् विहरति ॥ सू०॥१९॥ टीका-अथ पर्याप्तापर्याप्त कदाक्षिणात्यासुरकुमाराणाम् स्थानादिकं प्ररूपयितुमाह -'कहिणं भंते ! दाहिणिल्ला णं असुरकुमाराणं'-गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कुत्र खलु कस्मिन् प्रदेशे, दाक्षिणात्यानाम् असुरकुमाराणाम्, 'देवाणं पजत्तापज्जगाणं) तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों का (चउण्हं लोगपालाणं) चार लोकपालों का (पंचण्हं अग्गमहिवीणं) पांच अग्रमहिषियों का (सपरिवाराणं) परिवार सहितों का (तिण्हं परिसाणं) तीन परिषदों का (सत्तण्हं अणियाणं) सात अनीकों का (सत्तण्हं अणियाहिवईण) सात अनीकाधिपतियों का (चउण्ह य सट्ठीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं) चार साठ हजार अर्थात् दो लाख चालीस हजार आत्मरक्षक देवों का (अन्नेसिं च बहूणं) और भी बहुत-से (उत्तरिल्लाणं) उत्तर दिशा के (असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य) असुरकुमार देवो और देवियों का (आहेवच्चं) अधिपतित्व (पोरेवच्च) अग्रेसरत्व (कुब्वमाणे) करता हुआ (विहरइ) विचरता है ॥१९॥ टीकार्थ-अब दक्षिण दिशा के पर्याप्त और अपर्याप्त असुरकुमार देवों के स्थान आदि की प्ररूपणा की जाती है। श्री गौतम स्वामी ने प्रश्न किया-हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के पर्याप्त और त्तीसाए तायत्तीसगाणं) तेत्रीस त्रासनिश वोन (चउण्हं लोगपालाणं) यार ४ पासना (पंचण्हं अग्नमहिसीणं) पांय २५ भाडषीयाना (सपरिवाराण) परिपा२सडितना (तिण्डं परिसाणं) ३ ५२५होना (सत्तण्हं अणियाणं) सात ११४शन। (सत्तण्हं अणियाहिवईणं) सात मनीधिपतियोना (चउण्हं य सद्रीणं आयरक्ख देवसाहस्सीण) या२ सा: २ २मर्थात् दाम यातीसा२ माम२३४ वाना (अन्नेसिं च बहूणं) ilaa. ५५ ५. (उत्तरिल्लाणं) उत्तर Hशाना (असुरकुमाराणं देवाणय देवीणय) २५सु२४भा२ हे। मने पायोना (आहे वच्चं) मधिपतित्व (पोरेबच्चं) मस२२१ (कुत्रमाणे) ४२ता २लिने (विहरइ) वियरे छ, ॥१६॥ ટીકાથ–હવે દક્ષિણ દિશાના પર્યાય અને અપર્યાપ્ત અસુરકુમારના સ્થાન આદિની પ્રરૂપણ કરાય છે. શ્રી ગૌતમ સ્વામીએ પ્રશ્ન :-ભગવદ્ દક્ષિણ દિશાના પર્યાપ્ત અને શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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