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________________ ७०० प्रज्ञापनासूत्रे स्वासाम् अग्रहिषीणाम्, स्वासां स्वासां परिषदाम्, स्वेषां स्वेषाम् अनीकानाम् स्वेषां स्वेषाम् अनीकाधिपतीनाम्, स्वासां स्वासाम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणाम्, अन्येषाञ्च बहूनाम् भवनवासिनाम् देवानाञ्च देवीनाञ्च आधिपत्यम्, पौरपत्यम्, स्वामित्वम् भ त्वम्, महत्तरकत्वम्, आज्ञेश्वरसेनापत्यं कुर्वन्तः पालयन्तः 'महताऽहतनाटयगीतवादिततन्त्रोतलतालत्रुटितघनमृदङ्गपटुप्रवादितरवेण दिव्यान् भोगभोगान् भुञ्जाना विहरन्ति ।।सू० ॥१८॥ साणं अग्गमहिसीणं) अपनी-अपनी पटरानियों का (साणं साणं परिसाणं) अपनी-अपनी परिषदों का (साणं साणं अणियाणं) अपनी -अपनी अनीकाओं का (साणं साणं अणियाहिवईणं) अपने-अपने अनीकाधिपतियों का (साणं साणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं) अपनेअपने सहस्रों आत्मरक्षक देवों का (अन्नेसिंच बहूर्ण) अन्य भी बहुतसे (भवणवासीणं देवाण य देवीण य) भवनवासी देवों और देवियों का (आहेबच्च) अधिपतित्व (पोरेवच्चं) पुरपतित्व-अग्रेसरपन (सामित्तं) स्वामीपन (भहित्तं) भर्तृत्व (महत्तरगत) महत्तरपन (आणाईसरसेणावच्चं) आज्ञा-ईश्वर-सेनापतित्व (कारेमाणा) कराते हुए (पालेमाणा) पालते हुए (महताहतनदृगीत वाइयतंतीतलताल तुडियघणमुइंगपडुप्प वाइयरवेणं) आहत नृत्य, गीत, वादन एवं तंत्री तल ताल घन मृदंग के बजाने से उत्पन्न महान् ध्वनि से (दिव्वाई भोगभोगाई) दिव्य भोगोपभोग (भुंजमरणा) भोगते हुए (विहरंति) रहते हैं ॥१८॥ (साणं साणं लोगपाला णं) पात पाताना सोना (साणं साणं अग्गमहीसीणं पोत पोतानी ५८२४ीयाना (साणं साणं परिसार्ण) पोत पातानी परिषहोना (साणं साणं अणियाणं) पात पातानी सेनाना (साणं साणं अणियाहिवईण) पोत पातानी सेनाना मधिपतियाना (साणं साणं आयरक्खदेवसहस्सीण) पोत पोताना हुआ। माम२६४ हेवोना (अन्नेसिंच बहूणं) पीक पध(भवणवासीणं देवाण य देवीण य) नवनवासी वो भने वीयोना (आहेवच्चं) मधिपतिपा (पोरेवच्चं) पु२पतित्व-अग्रेस२पा (सामित्त) स्वाभापा (भट्टित्त) मतृत्व (महत्तरगत्तं) भउत्त२५॥ (आणाईसरसेणावचं) माज्ञा-श्व२-सेनापति१ (कारेमाणा) ४२॥ ५४. (पालेमाणा) nu 2 (महयाहतनदृगीतवाइयतंतीतलतालतुडियघनमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं) माउत, नृत्य, गीत, वाहन तेभा तत्री तो तो धन भृाना पाथी उत्पन्न यता महान् चनिया (दिव्वाई भोग भोगाई) हिव्य-गा५ ५ (मुंजमाणा) सेविता (बिहरंति) २७ छ. ॥१८॥ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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