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________________ ६८० प्रतिद्वारदेशभागानि - प्रतिभवनं प्राकारेषु वरणेषु सालेषु पाटतोरणप्रतिद्वाराणि - अट्टालककपाट तोरणप्रतिद्वाररूपा, येषु तानि प्राकाराट्टालककपाट तोरण प्रतिद्वारदेशभागानि, तत्राट्टालकाः - प्राकारस्योपरि भित्त्याश्रयविशेषाः, कपाटानि - प्रतोलीद्वारसत्कानि, तोरणानि प्रतोलीद्वारेषु प्रतिद्वाराणि - विशालद्वारापान्तरालवर्तीनि लघुद्वाराणि, 'जंतसयग्धीमुसलमुसंढि परियारिया' - यन्त्रशतघ्नी मुशल मुसण्टी परिवारितानि' यन्त्राणि - विविधरूपाणि, शतघ्न्यः - महायष्टयो महाशिला वा 'तोप' इति भाषा प्रसिद्धाः, याः पातिताः सत्यः पुरुषाणां शतानि घ्नन्ति मुशलानि प्रसिद्धान्येव, मुसण्ढयःप्रहरणविशेषा स्तैः परिवारितानि - समन्ताद वेष्टितानि, अतएव 'अउज्झा'अयोध्यानि - परैर्योद्धुमशक्यानि, अयोध्यत्वादेव 'सदा जया' सदा जयानि, सदा-सर्वदा जयो येषु तानि, 'सदा गुत्ता' सया गुप्तानि - सर्वकालं गुप्तानि प्रहरणैः तोरण और द्वार बने हुए हैं । प्राकार के ऊपर विशेष प्रकार के भित्याश्रय जो बने रहते हैं उन्हें अहालक कहते हैं और जो 'अटारी' शब्द से प्रसिद्ध हैं । फाटकों के द्वारों के कपाट यहां समझना चाहिए । फाटकों अर्थात् बडे दरवाजों के निकट जो छोटे द्वार होते हैं, वे यहां 'तोरण' शब्द से कहे गए हैं। वे भवन यंत्रों, शतनियों, मूसलों और मुलुंडी नामक शस्त्रों से युक्त हैं। वहां विविध प्रकार के यंत्र हैं। महान यष्टि (लकडी) या शिला को शतघ्नी कहते हैं, जो एक वार पडकर सैकडों पुरुषों का घात करती है । भाषा में उसे 'तोप' कह सकते हैं । मूसल प्रसिद्ध है और मुसुंदी एक प्रकार का शस्त्र है । इन शस्त्रों से युक्त होने के कारण वे भवन अयोध्य हैं - इन भवनों के ऊपर शत्रु युद्ध नहीं कर सकते और इसी से वे सदा जयवन्त हैं । वे योद्धाओं और शस्त्रास्त्रों से परिवृत होने के હાય છે. પ્રાકારના ઉપર વિશેષ પ્રકારના ભિત્યાશ્રય જે બનેલાં હોય છે. તેમને અટ્ટાલ કહે છે અને અટારીતા શબ્દથી જ પ્રસિદ્ધ છે. ફાટક-મેટા દરવાજાની ખાજીમાં જે નાનુ દ્વાર હાય છે. તેમને આહીં તારણ શબ્દથી કહેલ છે. ते लवनो यत्रो, शतघ्नीओ (तोय) भूसलो, भने भुसुंडी नाम शस्त्रोथी યુક્ત છે. ત્યાં વિવિધ જાતના યંત્ર છે. મહાનયષ્ટિ (લાકડી) અથવા શિલાને શતઘ્ની કહે છે. જે એક વાર પડવાથી સેંકડા પુરૂષોના સંહાર કરે છે. ભાષામાં તેને તપ કહે છે. મુસલ પ્રસિદ્ધ છે. અને મુસ`ઢી એક જાતનું શસ્ત્ર છે. આ શસ્ત્રોથી યુક્ત હાવાને કારણે તે ભવન અયેાધ્ય છે કેાઇ શત્રુ યુદ્ધ નથી કરી શકતા અને તેથી તેઓ સદા જયવન્ત છે. તે ચૈદ્ધા અને શસ્ત્રાસોથી શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧ प्रज्ञापनास्त्रे इत्यर्थः, अट्टालककदेशभागा - देशविशेषा "
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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