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________________ EN प्रज्ञापनास्त्रे सश्रीकाणि समरीचिकानि सोद्योतानि प्रासादीयानि दर्शनीयानि अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि, अत्र खल भवनवासि देवानां पर्याप्तापर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि । उपपातेन लोकस्यासंख्येयभागे, समुदघातेन लोकस्यासंख्येयभागे, स्वस्थानेन लोकस्यासंख्येयभागे, तत्र खल बहवो भवनवासिनो देवाः परिवसन्ति, तद्यथा असुरा १ नागाः २ सुपर्णाः ३ विद्युत् ४ अग्निश्च ५ द्वीपः उदधिश्व ७ । दि ८ - पवन ९ - स्तनित १० नामानः, दशधा एते भवनवासिनः ॥ १ ॥ रहित (णिम्मला) निर्मल (निष्यंका) पंक ( कदम) रहित (निक्कंकइच्छाया) आवरण रहित कान्ति वाले (सप्पभा) प्रभायुक्त (सस्सिरीया) श्री से सम्पन्न ( समरीइया) किरणों से युक्त (सउज्जोया) प्रकाशमय (पासाईवा ) प्रसन्न करने वाले ( दरिसाणिज्जा) दर्शनीय (अभिरुवा) अत्यन्त रमणीय (पडिरुवा) सुन्दर रूप वाले । ( एत्थ णं) यहां (भवणवासिदेवाणं पज्जत्तापजत्ताणं) पर्याप्त और अपर्याप्त भवनवासी देवों के (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) कहे हैं (उचवाएणं) उपपात की अपेक्षा (लोयस्स असंखेज्जइभाए) लोक के असं ख्यातवें भाग में (समुग्धाएणं) समुद्घात की अपेक्षा (लोयस्स असंखेज्जइभागे) लोक के असंख्यातवें भाग में (सहाणेणं) स्वस्थान की अपेक्षा (लोयस्स असंखेज्जइभागे) लोक के असंख्यातवें भाग में (तत्थ णं) वहां (बहवे ) बहुत (भवणवासी देवा परिवसंति) भवनवासी देव निवास करते हैं (तं जहा ) वे इस प्रकार हैं (असुरा) असुरकुमार (नाग - सुवन्ना) नागकुमार सुवर्णकुमार (सहा) थिए (लहा ) भज (घट्टा ) घसेस (मट्ठा) सूछेस (णीरया) २०४वगरना (णिम्मला) निर्माण (निप्पंका) अहव रहित (निक्कंकडच्छाया) भावर रहित अन्ति वाजा (सम्पभा) प्रलायुक्त (सस्सिरीया ) श्रीथीसंपन्न ( समरीइया) शोथी युक्त (सउज्जोया) प्राशभय (पासाईया) प्रसन्न ४२वावाणा ( दरिस णिज्जा ) दर्शनीय (अभिरूवा) अत्यन्त रमणीय (पडिरुवा) सुन्दर उपवाजा ( एत्थणं) माडी (भवणवासि देवाणं पज्जत्ता पज्जत्ताणं) पर्याप्त भने अय यति भन्ने प्रहारना लवनवासी हेवाना (ठाणा) स्थान ( पण्णत्ता ) ह्यां छे (उववाएणं) उपयातनी अपेक्षाये (लोयस्स असंखेज्जइभाए) असण्यातमा लागभां (समुग्धाएणं) सभुद्दधातनी अपेक्षाओ (लोयस्स असंखेज्इभाए) सोना असण्यात भा लागभां (सट्टाणेणं) स्वस्थाननी अपेक्षाओ (लोयस्स असंखेज्जइभागे) बोडना असभ्यातभा लागभां (तत्थ णं) त्यां धा (भवणावासी देवा परिवसंति) लवनवासी है। निवास ४रे छे (तं जहा ) तेथे या प्रारे छे શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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