SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 689
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.१७ भवनपतिदेवानां स्थानानि ६७५ चूडामणिमुकुटरत्न १ भूषणनागस्पटा २ गरुड ३ वज्र ४ पूर्णकलशाङ्कोफेसाः, ५ सिंह ६ मकर ७ गजाङ्का ८ श्ववरं ९ वर्धमाननियुक्तचिह्नगताः मुरूपा महद्धिका महाद्युतिकाः, महाबला महायशसो महानुभावा महासौख्या हारविराजितवक्षसः कटकत्रुटितस्तम्भितभुजाः अङ्गदकुण्डलमृष्ट गण्डतलकर्णपीठ धारिणः, विचित्रहस्ताभरणा विचित्रमौलिमुकुटाः कल्याणकप्रवरवस्त्रपरिहिताः (विज्ज) विद्युत्कुमार (अग्गी य) अग्निकुमार (दीव) द्वीपकुमार (उदही य) उदधिकुमार (दिसि-पवण-थणियनामा) दिशाकुमार, वायुकुमार, स्तनितकुमार नाम वाले (दसहा) दश प्रकार के (एए) ये (भवणवासी) भवनवासी देव हैं । (चूडामणि) चूडा रत्न (मउड) मुकुट (रयण) रत्न (भूसण) आभूषण (णागफड) नाग का फन (गरुल) गरुड (वइर) वज्र (पुण्णकलसंकउप्फेसा) पूर्ण कलश के चिह्न से युक्त मुकुट (सीह) सिंह (मगर) मकर (गयंक) हाथी का चिह्न (अस्सवर) श्रेष्ठ अश्व (वद्धमाण) शरावसंपुट (निज्जुत्तचित्तचिंधगया) इनसे युक्त विचित्र चिह्नों वाले (सुरूवा) सुन्दर रूप वाले (महिड्डिया) महा ऋद्धि वाले (महज्जया) महा कान्ति वाले (महब्बला) महान बल वाले (महाजसा) महान यशस्वी (महाणुभावा) महान् अनुभाव वाले (महासोक्खा) महा सुख वाले (हारविराइयवच्छा) हार से सुशोभित वक्षस्थल वाले (कडग तुडियर्थभियभुया) कडों और केयूरों से स्तंभित भुजा वाले (अंगयकुंडलमट्टगंडयलकण्णपीढधारी) अंगद कुंडल तथा कर्णपीठ (असुरा) असु२शुभा२ (नाग-सुवन्ना) नामा२, सु भा२, (विज्ज) विद्युत्भार (अग्गीय) मनभा२ (दीव) दी५४भार (उदहीय) धिमा२ (दिसि -पवण थणियनामा) हिशामा२, वायुमार, स्तनितभार नामवाणा (दसहा) इश प्रा२ना (एए भवणवासी) अपनवासी हे छ (चूडामणि) यूरत्न (मउड) भुगट (रयण) २त्न (भूसण) याभूषा (णागफग) नानी ३५ (गरुल) १३७ (वइर) * (पुण्ण-कलसंकउपफेसा) पूर्ण प्रशन यिहथी युश्त भुगट (सीह) सिड (मगर) भघ२ (गयंक) डाथीनु थिन (अस्सवर) श्रेष्ठ २म (वद्धमाण) शराप सपुट (निज्जूत्त चित्त चिंधगया) तेमनाथी युत शिक्षा (सुरूवा) सु४२३५ पा (महिढिया) भडान समृद्विवाणा (महज्जुइया) मन्तिम (महब्बला) महान मण ॥ (महाजसा) भडान यशस्वी (महाणुभावा) महान मनुभावप्रमावा (महासोक्खा) मडा सु५ ॥ (हारविराइयवच्छा) १२थी सुमित पक्षस्यवाणा (कडगतुडिय थंभियभुया) ४i ने मामधाथी तालित था। (अंगय कुंडल मडगंडयलकण्णपीढधारी) म 1 तथा ४ पीने धारण શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy