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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.१७ भवनपतिदेवानां स्थानानि ६७३ उपचितचन्दनकलशानि चन्दनघटसुकृततोरणप्रतिद्वारदेशभागानि आसक्तोसक्तविपुलवृत्तव्याधारितमाल्यदामकलापानि पञ्चवर्णसरससुरभिमुक्त पुञ्जोपचारकलितानि (ग्रन्थाग्नम् १०००) कालागुरुप्रवरकुन्दुरुष्कतुरुष्कधूपमघमघायमानगन्धोद्धृताभिरामाणि सुगन्धवरगन्धितानि गन्धवर्तिभूतानि अप्सरोगणसङ्घसंविकिर्णानि दिव्यत्रुटितशब्दसंप्रणादितानि सर्वरत्नमयानि अच्छानि श्लक्ष्णानि मसृणानिधृष्टानि मृष्टानि नीरजांसि निर्मलानि निष्पङ्कानि निःकङ्कटच्छायानि सप्रभाणि (गोसीससरसरत्त चंदणददरदिन्नपंचंगुलितला) गोशीर्ष तथा सरस लाल चंदन के हाथे जिनमें लगे हैं (उवचियचंदणकलसा) चंदन के कलशों से युक्त (चंदणघडसुकरतोरणपडिदुवारदेसभागा) द्वार देश में चन्दन चर्चित घटों से युक्त (आसत्तोसत्त विउलवट वग्घारियमल्लदामकलावा) ऊपर से नीचे लटकने वाली विपुल एवं गोलाकार मालाओं से युक्त (पंचवन्न सरससुरभिमुक्तपुंजोक्यारकलिया) पांच रंगों से ताजे एवं सुगंधित पुष्ण के उपचार से युक्त (कालागुरु पवरकुदुरुक्क तुरुक्क धूधमघमघतगंधूदुयाभिरामा) काले अगर, उत्तम चीडा, लोबान तथा धूप की महकती हुई सुगंध से अत्यन्त रमणीय (सुगंधवरगंधिया) उत्तम सुगंध से सुगंधित (गंधवटिभूया) गंध की वट्टी के समान (अच्छरगण संधसंविगिन्ना) अप्सराओं के समूह के समूहों से व्याप्त (दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया) दिव्य वाद्यों के शब्दों से शब्दायमान (सव्वरयणामया) सर्व रत्नमय (अच्छा) स्वच्छ (सहा) चिकने (लण्हा) कोमल (घट्टा) घिसे (पट्ठा) पौंछे (णीरया) रज से धुपेस पाथी प्रशस्त (गोसीससरसरत्तचंदणदहरदिन्नपंचंगुलितला) शीर्ष-यन विशेष तथा १२ सहनना था मा मा छ (उवचियचंदणकलसा) यहनना ४५Nथी युत (चंदणघडकयतोरणपडिदुवारदेसभागा) वा२ देशमा यहन यति पाना तोथी युत (आसत्तोसत्तवि उवववग्धारिय मल्लदामकलाबा) ७५२थी नीय सुधी १८४१qणी विधुर तेम १२ भासामाथी युत (पंचवन्नसरससुरभिमुक्कपुंजोवयारकलिया) पाय २ गाना विसत din तेमा सुधित ध्यान। उपया२थी युत (कालागुरु पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क धूव: मघमघंतगंधुद्धयाभिरामा) अणु म॥३२ हन, उत्तम यी सामान तथा धूपनी भयभथी भडती मेवी सुधथी सत्यत २मणीय (सुगंधवरगंधिया) उत्तम सुगधथी सुचित) (गंघवट्टिमूया) धनी मोटीना समान (अच्छर गणसंग संब्विगिन्ना) २५५सयाना सभूडाथी व्यास (दिव्वतुडियसहसंपणाइया) हिव्य पाधोना होमांथी शायमान (सव्वरयणामया) सर्व रत्नमय (अच्छा) २१२७ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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