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________________ ૨૭૨ प्रज्ञापनासूत्रे तुरस्राणि, अधः पुष्करकर्णिकासंस्थानसंस्थितानि उत्कीर्णान्तरविपुलगम्भीरखातपरिखानि प्राकाराहालककपाटतोरणप्रतिद्वारदेशभागानि यन्त्रशतघ्नीमुशलमु. सण्ढीपरिवारितानि अयोध्यानि सदा जयानि सदा गुप्तानि अष्टचत्वारिंशत्कोष्ठकरचितानि अष्टचत्वारिंशत्कृतवनमालानि क्षेमानि शिवानि किङ्करामरदण्डोपरक्षितानि लाउल्लोइयमहितानि गोशीर्षसरसरक्तचन्दनददरदत्तपश्चाङ्गुलितलानि (भवणवासीणं देवाणं) भवनवासी देवों के (सत्त भवणकोडीओ बावत्तरि भवणावाससयसहस्सा) सात करोड बहत्तर लाख भवन (भवंतीति मक्खायं) होते हैं, ऐसा कहा गया है। (ते णं भवणा) वे भवन (बाहिं) बाहर से (वट्टा) गोल अंतो चउरंसा) अन्दर से चौकोर (अहे) नीचे (पुकग्वरकन्निया संगणसंठिया) पुष्कर के आकार के (उक्किन्नंतरविउलगंभीरखातफलिहा) प्रकट अन्तर वाले, विस्तीर्ण तथा गंभीर खाई तथा परिखा वाले (पागारहालगकवाडतोरण पडिदुवारदेसभागा) प्राकार, अटारी, किवाड, तोरण तथा प्रतिद्वारों से युक्त (जंतसयग्घी मुसलमुसंढी परियारिया) यंत्र, शतघ्नी, मूसल और मुसंडी नामक शस्त्रों से युक्त (अउज्झा) शत्रुओं द्वारा अयोध्य (सदा जया) सदैव जयशील (सयावृत्ता) सदा सुरक्षित (अडयालकोटगरइया) अडतालीस कोठों से रक्षित (अडयालकयवणमाला) अडतालीस प्रकार की वनमालाओं से युक्त (खेमा) उपद्रवरहित (सिवा) मंगलमय (किंकरामरदंडोवरक्खिया) किंकर देवों के दंडों से रक्षित (लाउल्लोइयमहिया) लिपे-पुते होने से प्रशस्त बावत्तरि भवणावाससयसहस्सा) सात ४२१७ मातेर १५ सपन. (भवंतीति मक्खायं) डाय छे से वायु छे. (तेणं भवणा) ते सपना (बाहिं) ५१७।२थी (वट्टा) n (अंतो चउरसा) २५१२थी या२स (अहे) नीये (पुक्खरकन्निया संठाणसठिया) ५०४२ना मारना (उक्किन्नंतरविउलगंभीरखातफलिहा) प्रगट मत२१, विस्तीत nel२ भा तथा ५.२ (पागारट्टालगकवाडतोरणपडिदुवारदेसभागा) १२ 24211, ४मा, तो२९], तथा प्रतिद्वारोपni (जंतसयग्धीमुसलमुसढी परिवारिया) यंत्र, शतप्नी, भुसस मने भुसढी नाभ: शस्त्रोथी युत्त (अउज्झा) शत्रुमाथी अयोध्य (सदा जया) सदैव न्यशी (सया गुत्ता) सह। सुरक्षित (अडयालकोदृगर इया) २५ तालीस हाथी २येस (अडयालकयवणमाला) २५उतालीस प्रारनी वनमाजासाथी युद्धत (खेमा) उपद्रव २डित (सिवा) मसमय (किंकरामरदंडोवरक्खिया) ४२ हेवाना 3थी २क्षित (लादल्लोइयमहिया) दीपा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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