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प्रज्ञापनासने सार्धत्रिपञ्चाशत्सहस्राणि उपर्यधो वर्जयित्वा ततो मणितम् । मध्ये त्रिसहस्रेषु भवन्ति तु नरकास्तमस्तमायाम् ॥३॥ त्रिंशच्च पञ्चविंशतिः, पञ्चदश दशैव शतसहस्त्राणि ।
त्रीणि च पञ्चोनैकं पञ्चैव अनुत्तरा नरकाः॥ ४॥ सू० १४ ॥ टीका-'आसीयं आशीतम् अशीतिसहस्राधिकं योजनलक्षं रत्नप्रभायाः पृथिव्याः बाहल्यं वर्तते, 'बत्तीसं' द्वात्रिंशम-द्वात्रिंशदधिकं योजनलक्षं बाहल्यं शर्कराप्रभायाः अट्ठावीसं च होंति' अष्टाविंशश्च-अष्टाविंशतिसहस्राधिकं योजन ____ (अटूठुत्तरं च) आठ अधिक (तीसं) तीस (छब्बीसं) छन्वीस (चेव)
और (सयसहस्सं तु) लाख (अट्ठारस) अठारह (सोलसगं) सोलह (चउद्दसं) चौदह (अहियं तु) अधिक (छट्ठीए) छठी भूमि में ॥२॥ __ (अतिवन्न सहस्सा) साढे बाचन हजार (उपरिमहे) ऊपर और नीचे (पज्जिऊण) छोड कर (ता) तो (भणियं) कहा है (मज्झे) मध्य में (तिसहस्से लु) तीन हजार योजनों में (होंति उ णरगा तमतमाए) तमस्तमःप्रभा में नारकावास होते हैं ॥३॥
(तीसा य) तीस (पन्न वीसा) पच्चीस (पन्नरस) पन्द्रह (दसेव) दश (सयसहस्साई) लाख (तिन्नि) तीन (पंचूणेगं) पांच कम एक लाख (पंचेव) पांच ही (अणुत्तरा) अनुत्तर (गरगा) नरकावास ॥१४॥
टीकार्थ-सातों पृथिवियों की जो मोटाई पहले कही गई है, उसकी संग्रहणी गाथा कहते हैं-रत्नप्रभा पृथिवी की मोटाई एक लाख अस्सी
(अठ्त्तरंच) 418 -मधि४ (तीसं) त्रीस (छब्बीस) ७वी (चेव) मने. (सय सहस्संतु) (अट्ठारस) Aढ२ (सोलसणं) सोख (चउद्दस) यौह (अहियंत) मधि (छट्ठीए) छी भूमिमां ॥२॥
(अद्धतिवन्न सहस्सा) सा1 मापन उन्नर (उवरि महे) 6५२ मते नये (वज्जिऊग) त्यने (तो) त! (मणिपं) ४घुछे (मझे) भन्यमा (तिसहस्से सु) त्रण तर योनिमा (होति उणरगा तमतमाए) तम: तम: प्रमामा ना२४॥ વાસ હોય છે જે ૩ છે
(तीसाय) श्रीस (पन्नवीसा) पचीस (पन्नरसं) ५४२ (दसेव) ४स (सय सहस्साई) 4 (तिन्निय) त्र (पंचूणेगं) पाय छ। ४ ५ (पंचेव) पांय " (अणुत्तरा) मनुत्तर (गरगा) न२४वास ॥ १४ ॥
ટીકાથ–સાતમી પૃથિવીની જે મેટાઈ પહેલાં કહેલી છે, તેની સંગ્રહણી ગાથા કહે છે-રત્નપ્રભા પૃથ્વીની મેટાઈ એક લાખ એંસી હજાર જન
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧