________________
प्रमेयबोधिनी टीका प्र. १ सू० ५ रूप्यजीव प्रज्ञापनानिरूपणम्
४३
"
विधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा - कर्कश स्पर्शपरिणताः १, मृदुकस्पर्शपरिणताः २, गुरु कस्पर्शपरिणताः ३, लघुकस्पर्शपरिणताः ४, शीतस्पर्शपरिणताः ५, उष्णस्पर्शपरिताः ६, स्निग्धस्पर्शपरिणताः ७, रूक्षस्पर्शपरिणताः ८, ये संस्थानपरिणतास्ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्तास्तद्यथा - परिमण्डलसंस्थानपरिणताः १, वृत्तसंस्थानपरिणताः २, त्र्यत्रसंस्थान परिणताः ३, चतुरस्रसंस्थानपरिणताः ४, आयतसंस्थानपरिणताः, ५, (२५) ॥ सू० ५ ॥
रूप में परिणत ( महुररसपरिणया) मिठे रस के रूप में परिणत (जे) जो (फासपरिणया) स्पर्श रूप में परिणत (ते) वे (अट्ठविहा) आठ प्रकार के (पन्ना) कहे है ( तं जहा ) वह इस प्रकार (कक्खड फासपरिणया) कठोर स्पर्श के रूप में परिणत (मज्य फासपरिणया) कोमल स्पर्श के रूप में परिणत (गरुयफासपरिणया) भारी स्पर्श के रूप में परिणत ( लहुयफासपरिणया) हल्के स्पर्श के रूप में परिणत ( सीयफास परिणया) शीत स्पर्श के रूप में परिणत ( उसीण फासपरिणया) गर्म स्पर्श के रूप में परिणत (गिद्ध फासपरिणया) चिकने स्पर्श के रूप में परिणत ( लुक्खफा सपरिणया) रूखे स्पर्श के रूप में परिणत (जे) जो ( संठाणपरिणया) संस्थान आकार रूप में परिणत (ते) वे (पंचचिहा) पांच प्रकार के (पण्णत्ता) कहे (तं जहा) वह इस प्रकार है (परिमंडलसंठाणपरिणया) गोलाकार में परिणत ( वह संठाणपरिणया) चुडी के समान आकार में परिणत (तंस संठाण परिणया) तिकोने (अंबिलरस परिणया) पाटा रसना ३५मा परिणत (महुररसपरिणया) भीठा रसना इमां परिश्रुत (जे) ने (फासपरिणया) स्पर्श ३५मा परिणत (ते) तेथे (अट्ठविहा) मा प्रहारना (पन्नत्ता) ह्या छे ( तँ जहा) ते या अरे (कक्खडफास - परिणया) ४४।२ स्पर्शना ३मां परित (मउयफासपरिणयां) भसस्पर्शना उपभां परिएणुत (गरुथफासपरिणया) लारे स्पर्शना उपमा परिणत ( लहुयफासपरिणया) हुदा स्पर्श ३५ परिणत (सीयफासपरिणया) शीत स्पर्शना ३५मा परिणत (उसिणफासपरिणया) गरम स्पर्शना उपमा परिणत ( णिफासपरिणया) या स्पर्शना ३५भां परिश्रुत (लुक्खफासपरिणया) परमथडा स्पर्शना ३५मा परिणत (जे) भे ( संठाणपरिणया) संस्थान भार ३५मां परिश्रुत (ते) तेथे (पंचविहा) पांथ अारना (पण्णत्ता) ४ह्या छे (तं जहा ) ते या प्र४/२ ( परिमंडल संठाणपरिणया) गोणारभां परिणत ( वट्टसं ठाणपरिणया) यूडीना समान आहारमा परिशशुत (तंससंठाणपरिणया) | गुणाना मारमा परिणत ( चउरंस संठाणपरिणया) चतुरस्त्र भारभां परित (आययसं ठाणपरिणया) सामां भाारमा परिणत ॥५॥
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧