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________________ प्रज्ञापनासूत्रे संठाणपरिणया २, तंस संठाणपरिणया ३, चउरंससंठाण परिणया ४, आययसंठाणपरिणया' ५॥सू. ५॥ छाया-ये वर्णपरिणतास्ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-कालवर्णपरिणताः १ नीलवर्णपरिणताः २, लोहितवर्णपरिणताः ३, हारिद्रवर्णपरिणताः ४, शुक्लवर्णपरिणताः ५, ये गन्धपरिणता रुते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सुरभिगन्धपरिणताश्च १, दुरमिगन्ध-दुर्गन्धपरिणताश्च २, ये रसपरिणतास्ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्ता स्तद्यथा-तिक्तरसपरिणताः १, कटुकरसपरिणताः २, कषायरस्परिणताः ३, अम्लरसपरिणताः ४, मधुररसपरिणताः ५, ये स्पर्शपरिणतास्तेऽष्ट शब्दार्थ-(जे) जो (यण्णपरिणया) वर्ण रूप में परिणत हो (ते) वे (पंचविहा) पांच प्रकार के (पन्नत्ता) कहे हैं (तं जहा) वह इस प्रकार (काल वण्ण परिणया) काले वर्ण के रूप में परिणत (नील वण्णपरिणया) नील वर्ण के रूप में परिणत (लोहिय वण्णपरिणया) लाल वर्ण के रूप में परिणत (हालिदवण्णपरिणया) पीले वर्ण के रूप में परिणत (सुकिल्लवण्णपरिणया) श्वेत वर्ण के रूप में परिणत (जे) जो (गंध परिणया) गंध रूप में परिणत (ते) वे (दुविहा) दो प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं । (तं जहा) यह इस प्रकार (सुन्भिगंधपरिणया) सुगंध के रूप में परिणत (दुन्भिगंध परिणया) दुर्गध के रूप में परिणत (जे) जो (रस परिणया) रस के रूप में परिणत (ते) वे (पंचविहा) पांच प्रकार के (पण्णत्ता) कहे है (तं जहा) वह इस प्रकार है (तित्तरसपरिणया) तिक्त रस के रूप में परिणत (कडुयरसपरिणया) कडुवे रस के रूप में परिणत (कसाय रसपरिणया) कसैले रस के रूप में परिणत (अविल रस परिणया) खट्टे रस ___wथ-(जे) रे (वण्णपरिणया) प ३५मा परिणत (ते) तेयो (पंचविहा) पांय ४२ना (पण्णत्ता) ४ा छ. (त जहा) ते २ रीते (कालवण्णपरिणया) ॥ २॥ ३५मा परिणत (नीलवण्णपरिणया) पाणी व न। ३५मा परिणत (लोहियवण्णपरिणया) सास २ ३५मा परिणत (हालिद्दवण्णपरिणया) पीना ३५मा परिणत (सुकिल्लवण्णपरिणया) श्वेत ना ३५मा परिणत (जे) २ (गंधपरिणया) ॥ ३५मा परिणत (ते) तेसो (दुविहा) में प्रा२न॥ (पण्णत्ता) ४ा छ (तजहा) ते २॥ रीते (सुन्भिगंधपरिणया) सुचना ३५मा परिणत (दुभिगंधपरिणया) हुन॥ ३५मा परिणत (जे) रे (रसपरिणया) २सना ३५मा परिणत (ते) तेमा (पंचविहा) यांन्यप्रा२न। (पण्णत्ता) ४था छ (तित्तरसपरिणया) तित २सना ३५मा परिणत (कडुयरसपरिणया) ४७१। २सना ३५मा परिणत (कसायरसपरिणया) तु२॥ २सन। ३५मा परिणत શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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