SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र.१ सू. ५ रूप्यजीवप्रज्ञापनानिरूपणम् ४१ णुपुद्गलाः स्कन्धत्वपरिणामरहिताः केवलाः परमाणवः, इत्यर्थः, 'ते समासओ पंचविहा पण्णत्ता' ते-स्कन्धादयश्चत्वारो रूप्यजीवाः, 'समासओ' समासतःसंक्षपेण 'पंचविहा' पञ्चविधाः-पश्चप्रकाराः 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता:-प्ररूपिताः सन्ति 'तं जहा-वण्णपरिणया, गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया' तद्यथा-वर्णपरिणताः १, गन्धपरिणताः २, रसपरिणताः ३, स्पर्शपरिणताः ४, संस्थानपरिणताः ४, तत्र वर्णतः परिणताः वर्णपरिणामभाजः वर्णपरिणताः, इत्येवं गन्धपरिणतादयोऽपि व्याख्येयाः॥ (सू० ४) मूलम-'जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता तं जहाकालवण्णपरिणया १, नोल वण्णपरिणया २, लोहिययण्णपरिणया ३, हालिद्दवपणपरिणया ४, सुकिल्लवण्णपरिणया ५ जे गंधपरिणया ते दुविहा पन्नत्ता तं जहा-सुब्भिगंधपरिणया य दुन्भिगंधपरिणया य। जे रसपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता तं जहा–तित्तरसपरिणया १, कडुयरसपरिणया २, कसायरस परिणया ३, अंबिलरसपरिणया ४, महुररसपरिणया ५, जे फासपरिणया ते अविहा पन्नत्तातं जहा-कक्खडफासपरिणया १, मउयफासपरिणया २, गुरुयफासणया ३, लहुयफासपरिणया ४, सीयफ़ासपरिणया ५, उसिणफासपरिणया ३, णिद्धफासपरिणया ७, लुक्खफासपरिणया ८, जे संठाणपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-परिमंडल संठाणपरिणया १, वह ऐसा पुद्गल द्रव्य की जिसका विमाग संभव न हो, परमाणु कहलाता है। परमाणु स्कन्ध में मिला नहीं होता है । ऐसा समझना चाहिए। ये चारों रूपी-अजीव संक्षेप से पांच प्रकार के कहे गए हैं। वे प्रकार ये हैं-वर्ण परिणत, गंध परिणत, रस परिणत, स्पर्श परिणत और संस्थान परिणत । जो वर्ण के रूप में परिणत हों, वे वर्ण परिणत कहलाते हैं। इसी प्रकार गंध परिणत आदि भी समझ लेना चाहिए।४। વિભાગ અસંભવિત છે તે પરમાણુ કહેવાય છે. પરમાણુ સ્કંધમાં મળેલ નથી હેતુંતે વિભિન્ન દ્રવ્ય હોય છે એમ સમજવું જોઈએ. ૪ प्र०६ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy