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________________ ५३८ प्रज्ञापनासूत्रे देवाश्चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा-'भवणयासी'-भवनवासिनः १, 'याणमंतरा' -वानव्यन्तराः २, 'जोइसिया'-ज्योतिषिकाः ३, 'वेमाणिया'-पैमानिकाथ४, तत्र भयनवासिनः प्ररूपयितुमाह-'से किं तं भवणवासी ? अथ के ते, कतिविधा इत्यर्थः, भवनवासिनः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'भवणवासी दसविहा पण्णत्ना'-भवनवासिनो दशविधाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा'-तद्यथा-'असुरकुमारा' - अमुरकुमाराः ? १, 'णागकुमारा'-नागकुमाराः २, 'सुवन्नकुमारा'-सुवर्णकुमाराः ३, 'विज्जुकुमारा'-विद्युत्कुमाराः ४, 'अग्गिकुमारा'-अग्निकुमाराः ५, 'दीवकुमारा'-द्वीपकुमाराः ६, 'उदहिकुमारा'-उदधिकुमाराः ७, 'दिसाकुमारा'दिक्कुमाराः ८, 'वाउकुमारा'-वायुकुमाराः ९, 'थणियकुमारा'-स्तनितकुमाराः की प्रज्ञापना पूरी हुई (से तं जीवपन्नवणा) यह जीय प्रज्ञापना पूरी हुई (से त्तं पण्णवणा) प्रज्ञापना नामक पहला पद पूरा हुआ। (पन्नवणाए भगवईए पढमपयं समत्त) प्रज्ञापना भगवतो का प्रथम पद समाप्त टीकार्य-देवों की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं-देव कितने प्रकार के हैं ? भगवान् ने उत्तर दिया-देव चार प्रकार के कहे गए हैं, वे ये हैं -(१) भवनवासी (२) वानव्यन्तर (३) ज्योतिष्क और (४) वैमानिक। भवनवासियों की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं-भवनवासी देव कितने प्रकार के हैं ? भगवान् ने कहा-दश प्रकार के हैं, यथा(१) असुरकुमार (२) नागकुमार (३) सुवर्णकुमार (४) विद्युत्कुमार (५) अग्निकुमार (६) द्वीपकुमार (७)उदधिकुमार (८) दिक्कुमार पश्यन्द्रियानी प्र३५९॥ ५७ (से त्तं संसारसमावन्नजीवपण्णवणा) २॥ ससारी वानी ५३५९॥ २७ (से तं जीव पण्णवणा) २॥ २04 प्रज्ञापन पुरी २७ (से त्तं पण्णवणा) प्रज्ञापन नाम: ५४ ५३ थयु ॥ सू. ४१ ॥ (पन्नवणाए भगवईए पढमपयं समत्तं) પ્રજ્ઞાપના ભગવતીનું પ્રથમ પદ સમાપ્ત ટીકાથ–દેવેની પ્રરૂપણું કરવાને માટે કહે છે દેવે કેટલા પ્રકારના છે? શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપે–દેવ ચાર પ્રકારના કહેલા છે, તેઓ આ शते छ-(१)मवनवासी (२) पानव्यन्त२ (3) न्योति (४) वैमानि४ २॥ ચાર ભેદ ભવનપતિ દેવાના છે ભવનવાસિની પ્રરૂપણ કરવાને માટે કહે છે ભવનપતિ દેવ કેટલા પ્રકારના છે? श्री मायाने ४थु-४२० २छ. भ3-(१) मसु२७मा२ (२) ना भार (3) सुपर्णभा२ (४) विधुसुमा२ (५) मनभा२ (६) दीपमा२ (७) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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