SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 530
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१६ प्रज्ञापनासूत्रे के ते यथाख्यातचारित्रार्याः ? यथाख्यातवारित्रार्या द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - छद्मस्थयथाख्यातचारित्रार्याश्च केवलियथाख्यातचारित्रार्याश्च । ते एते यथाख्यातचारित्रार्याः ५ । ते एते चारित्रार्याः १ । ते एते अवृद्धिप्राप्तार्याः । ते एते कर्मभूमिकाः । ते एते गर्भव्युत्क्रान्तिकाः । ते एते मनुष्याः ||सू०४०|| / चारित्रार्य कितने प्रकार के हैं ? (दुविहा पण्णत्ता) दो प्रकार के कहे हैं ( तं जहा ) वे इस प्रकार ( संकिलिस्समाण सुहुमसं परायचरितारिया य संक्लिश्यमान सूक्ष्म सम्पराय चारित्रार्य और (विसुज्झमाणहुमसंपरायचरितारिया ) विशुद्धयमानसूक्ष्मसंप राय चारित्रार्य (से त्तं सुहुमसंपरायचरित्तारिया) यह सूक्ष्मसम्पराय चारित्रार्य की प्ररूपणा हुई । (से किं तं अहम्खायचरितारिया ?) यथाख्यात चारित्रार्य कितने प्रकार के हैं ? (दुविहा पण्णत्ता) दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा ) वे इस प्रकार ( छउमत्थ अहक्खायचरित्तारिया य) छद्मस्थ यथाख्यात चारिार्य और (केवलिअक्खा यचरित्तारिया य) केवलि यथाख्यात चारिचार्य (से अक्खायचरितारिया) यह यथाख्यात चारित्र से आर्य की प्ररूपणा हुई । (सेतं चरितारिया) ये चारित्रार्य हुए (से तं अणिपित्तारिया) ये अमृद्धिप्राप्त आर्य हुए ( से तं कम्मभूमगा) यह कर्म - ( से किं तं सुहुमसंपराय चरितारिया ?) सूक्ष्म सौंपराय चारित्रार्य डेटसा प्रहारना छे ? (दुविहा पण्णत्ता) ते मे प्रारना ह्या छे (तं जहा ) तेथेो मा प्रारे छे (संकिलिस माणसुहुम संपरायचरितारिया य) संविश्यमान सूक्ष्मस पराय यारित्रार्य भने (विसुज्झमाणसुसु हुम संपर(यच रित्तरिया य) विशुद्धयमान सूक्ष्मसंपराय यरित्रार्य (से त्तं सुदुम संपरा यचरितारिया) या सूक्ष्म सौंपराय चारित्राની પ્રરૂપણા થઇ ( से किं तं अहक्खा यचारितारिया ?) यथाण्यात अरित्रार्य डेंटला प्रार ना छे ? ( दुविहा पण्णत्ता) में प्रारना या छे (तं जहा ) तेथेो भा प्रहारे छे (छत्थ अहखाचारितारिया य) ७६भस्थ यथाज्यात यारित्रार्य भने (केवल अक्खाय चरितारिया य) देवसी यथाभ्यात चारित्रार्य. ( से त्तं अहक्खायचरित्तारिया) या यथाभ्यात यास्त्रिथी आर्यनी प्र३પણા થઈ (से त्तं चरित्तारिया) मा प्रहारे यारित्रार्य ह्या छे. ( से त्तं अणिढिपत्तारिया ) रमा वृद्धि प्राप्त मार्य थया ( से त्तं कम्मभूमगा) मा उमलूनी प्रथा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy