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प्रज्ञापनासूत्रे
अनमिगृहीतकुदृष्टिः, संक्षेपरुचिर्मवति ज्ञातव्यः । अविशारदः प्रवचने, अनमिगृहीतश्च शेषेषु ॥११॥ यः अस्तिकायधर्म, श्रुतधर्म खलु चारित्रधर्मश्च । श्रद्दधाति जिनामिहितं, स धर्मरुचिरिति ज्ञातव्यः ॥१२॥ परमार्थसंस्तवो वा, सुदृष्टपरमार्थ सेवनावाऽपि ।
व्यापन्न कुदर्शनवर्जनं च सम्यक्त्वश्रद्धानम् ॥१३॥ किरिया भाव रुई) जो किया भाव रुचि वाला है (सो खलु किरियाई नाम) वह निश्चय से क्रिया रुचि है (१०) ___(अणमिगहिय कुदिट्ठी) जिसने मिथ्या दृष्टि नहीं ग्रहण की (संखेय रुइत्ति होइ नायव्यों) उसे संक्षेप रुचि जानना चाहिए (अविसारा पययणे) प्रवचन में अकुशल (अणमिग्गहिओ य सेसेसु) अन्य दर्शनों का भी ज्ञान नहीं (११) ।
(जो अधिकाय धम्म) जो अस्तिकाय धर्म को (सुयधम्म) श्रुतधर्म को (खलु) निश्चय (चारित्तधम्मं च) और चारित्रधर्म को (सहइ) श्रद्धा करता है (जिणाभिहियं) जिनोक्त (सो धम्मरुइ त्ति नायव्चो) उसे धर्मरुचि जानना चाहिए। (१२)
(परमत्थ संघयो वा) परमार्थ का परिचय या आदर करना (सुदिट्ठ परमत्थ सेवणा वावि) परमार्थ को सम्यक प्रकार से देखने वालों की सेया करना (वावन्नकुदसणय जणा य) समकित का वमन कर देने मा ३थिा छ (सो खलु किरियारूई नाम) ते निश्चये ४२] [340 ३थि छे (१०)
(अणभिगहिय कुदिट्टी) 0 मिथ्या दृष्टि नयी अड ४२१ (संखेवरुइत्ति होइ नायव्वो) तेने स २५ ३थि तो लेन्मे (अविसारओ पवयणे) अवयनमा न्मशत मविश२४ (अणभिग्गहीओ य सेसेसु) मन्य शनानु ५ ज्ञान नहीं (११)
(जो अस्थिकायधम्म) रे मस्तिय यमन (सुयधम्म) श्रुतधमाने (क्लु) 18 (चारित्तधम्मं च) मन यात्रि मन (सद्दहइ) श्रद्धा से छे (जिणाभिहिय) rait (सो धम्मरुइत्ति नायब्वो) तेने म ३यि nga -ये (१२) ।
(परमत्थ संथवो वा) ५२माय नी पश्यिय 11२ मा४२ ४२वी. (सुदिट्ठ परमत्थ सेवणावा वि) ५२मान सभ्य५ ॥२ नारायानी सेवा ४२वी (वा वन्न कुर्दसणा वज्जणाय) समातिनु मन ४२॥२॥ तथा भिथ्याशनायोथी २ हे (सम्मत्त सद्दहणा) सभ्यत्यमां-श्रद्ध! राणे छ (23)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧