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प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३९ समेददर्शनार्यनिरूपणम्
४६९ निश्शङ्कितो निष्काक्षितः, निर्विचिकित्सः अमूह दृष्टिश्च । उपबृहणस्थिरीकरणे, वात्सल्य प्रमावना अष्ट ॥१४॥
ते एते सरागदर्शनार्याः । टीका-अथ दर्शनार्यान् प्ररूपयितुमाह-से किं तं दसणारिया ?' -अथ के तेकतिविधा दर्शनार्याः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'दसणारिया दुविहा पण्णता'-दर्शनार्याः द्विविधाः प्रज्ञताः, 'तं जहा'-तद्यथा-'सरागदसणारियाय'-सरागदर्शनाश्व, 'वीयरागदंसगारिया य'-वीतरागदर्शनार्याश्च, तत्र सराग-रागेण-कपा येणासहितं दर्शनम् आर्य येषां ते, तथाविधेन वा आर्याः श्रेष्ठाः सरागदर्शवालों तथा मिथ्यादृष्टियों से दूर रहना (सम्मत्तसहहणा) यह समम्यक्त्व-श्रद्धा है। (१३)
(निस्संकिय) शंका का न करना (निक्कंखिय) कांक्षा न करना (निश्चितिगिच्छा) घृणा न करना या धर्म के फल में संदेह न करना (अमूढदिट्टी य) मूढ दृष्टि न होना (उचघूह) अपने गुणों को और शासन को बढाना थिरीकरणे) धर्म से चलायमान आत्मा और पर को स्थिर करना (बच्छल्ल) सार्मिकों पर प्रीति करना (पमावणा) प्रमावना करना (अट्ठ) ये आठ दर्शन के आचार हैं। (१४)
(से तं सरागर्दसणारिया) यह सरागदर्शनार्य की प्ररूपणा हुई ॥३९॥ ___टोकार्थ-अब दर्शनार्यों की प्ररूपणा की जाती है । प्रश्न है कि दर्शनार्य कितने प्रकार के हैं ? भगवान ने उत्तर दिया-दर्शनार्य दो प्रकार के कहे हैं:-सरागदर्शनार्य और वीतरागदर्शनार्य ।
जो दर्शन राग अर्थात् कषाय से युक्त होता है, वह सरागदर्शन
(निःसंकिय) न ४२वी (निक्कंखिय) ४iक्षा न. ४२वी (निवित्तिगिच्छा) धृ॥ न ४२वी -424॥ मना मा सहेड न. ४२३॥ (अमूढदिट्ठी) भूट ष्टि न यु (उबवूए) पोताना गुणाने भने सनने वधारयु (थिरीकरणे) धर्मथी ચલાયમાન આત્મા અને પાને સ્થિર કરવાં (વછર૪) સાધમીઓ પર પ્રીતિ २।५वी (पभावणा) प्रभावना ४२वी (अट्र) 241 2418 शानन माघार छ (१४)
(से तं सरागदसणारिया) २॥ स२॥ शनायनी प्र३५७॥ २४,
ટીકાથ–હવે દર્શનાર્યોની પ્રરૂપણું કરાય છે. આ વિષયમાં ગૌતમસ્વામી પ્રભુશ્રીને પ્રશ્ન કરતાં કહે છે કે દર્શનાર્ય કેટલા પ્રકારના છે?
શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપે-દર્શનાર્ય બે પ્રકારના તે–સરાગદશનાર્ય અને વીતરાગ દર્શનાર્ય.
જે દર્શન રાગ અર્થાત્ કષાયથી યુક્ત હોય છે તે સરાગદર્શન કહેવાય
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧