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________________ ૪૦૨ प्रज्ञापनासूत्रे नपुंसकाः। एतेषां एवमादिकानां पर्याप्तापर्याप्तानां भुजपरिसर्माणां नव जातिकुलकोटियोनि प्रमुखशतसहस्राणि भवन्तीत्याख्यातम् । ते एते भुजपरिसर्पस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः। ते एते परिसर्पस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः।सू३३। टीका-अथ महोरगान् प्ररूपयितुमाह-से किं तं महोरगा ?' 'से' अथ 'कि तं' के ते-कतिविधा इत्यर्थः, महोरगाः प्रज्ञप्ताः, भगवानाह-'महोरगा अणेगविहा गर्भज (तत्थ णं जे ते समुच्छिमा) उनमें जो संमूर्छिम हैं (ते सव्वे नपुंसगा) वे सब नपुंसक हैं (तत्थ णं जे ते गन्भयक्कंतिया) उनमें जो गर्भज हैं (ते तिविहा पण्णत्ता) चे तीन प्रकार के कहे हैं (त जहा) वे इस प्रकार (इत्थी, पुरिसा, नपुंसगा) स्त्री, पुरुष और नपुंसक (एएसि णं एवमाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) इत्यादि इन पर्याप्त-अपर्याप्तों के (भुयपरिसप्पाणं) भुजपरिसों के (नवजाइ कुलकोडिजोणियप्पमुहसयसहस्साई) नौ लाख जातिकुलकोरियों के योनिप्रवह (भवंतीति मक्खायं) होते हैं, ऐसा कहा है (से तं भुयपरिसप्प थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया) यह भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रियतिर्यचों की प्ररूपणा हुई (से तं परिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया) यह परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की प्ररूपणा भी पूरी हुई ॥३३॥ टीकार्थ-अब महोरगों की प्ररूपणा करते हैं-महोरग कितने प्रकार के होते हैं ? भगवान् ने उत्तर दिया-महोरग अनेक प्रकार के होते (समुच्छिमाय गब्भवक्कंतिया य) सभूमि मने पल (तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा) ते मामा के सभूछिम छ (ते सव्वे नपुंसगा) तेथे। या नधुस४ छ (तत्थणं जे ते गम्भवक्कंतिया) तेभारे मा छे (ते तिविहा पण्णत्ता) तेमात्र ४२॥ ४ा छ (तं जहा) तेस। 21 प्रारे (इत्थी, पुरिसा, नपुंसगा) स्त्री, ५३५, मने नस (एएसि णं एवमाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) विगेरे २॥ पर्यात अपर्याप्तीना (भुयपरिसप्पाणं) भुपरिसना (नवजाइकुलकोडि जोणियप्पमुह सयसहस्साई) नव are alagu टियाना योनिप्रवाड (भवंतीति मक्खाय) साय छ मेम ४यु छे. __ (से तं भुयपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया) - मु०४५/२सपरथायर पथन्द्रिय तिय यनी प्र३५॥॥ २७ (से तं परिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया) આ પરિસર્પ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિયાની પ્રરૂપણા થઈ સૂ. ૩૩ ટીકાઈ-હવે મહેરોની પ્રરૂપણું કરે છે મહેરગ કેટલા પ્રકારના હોય છે? શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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