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________________ प्रमेययोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३३ परिसर्पस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः ४०१ पर्यासानाम् उरःपरिसर्पाणां दशजाति कुलकोटियोनिप्रमुखशतसहस्राणि भवन्तीत्याख्यातम् । ते एते उरःपरिसर्पाः । अथ के ते भुजपरिसर्पाः ? भुजपरिसर्पा अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथानकुलाः, सेहाः, शरटाः, शल्याः, सरठाः, साराः, खोराः, गृहकोकिलाः, विषम्मराः, मूषाः, मगुसाः, पयोलातिकाः, क्षीरविडालिकाः, जोहा-चतुष्पादिकाः, ये चान्ये तथाप्रकाराः। ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-स्त्रियः, पुरुषाः, पज्जत्तापज्जत्ताणं) इत्यादि इन पर्याप्त और अपर्याप्त (उरपरिसप्पाणं) उरपरिसर्पो के (दसजाइकुलकोडि जोणियप्पमुहसयसहस्साई) दस लाख जाति कुलकोटि योनिप्रवह (भवंतीतिमक्खायं) होते हैं, ऐसा कहा हैं । (से तं उरपरिसप्पा) यह उरपरिसर्प की प्ररूपणा हुई। (से किं त भुयपरिसप्पा ?) भुजपरिसर्प कितने प्रकार के हैं ? (अणेगविहा पण्णत्ता) अनेक प्रकार के कहे हैं (त जहा) वे इस प्रकार (नउला) नौला (सेहा) सेह (सरड) सरट अर्थात् गिरगिट (सल्ला) शल्य (सरठा) सरठ (सारा) सार (खोरा) खोर (घरोइला) गृह कोकिला (विस्संभरा) विसमरा (मूसा) चूहा (मुगुंसा) गिलहरी (पयलाइया) पयोलातिका (छीरविरालिया) क्षीर विडालिका (जहा चउप्पया) चौपायों के समान जानना चाहिए । (जे याचन्ने तहप्पगारा) अन्य जो इसी प्रकार के हैं (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) वे संक्षेप से दो प्रकार के कहे हैं (त जहा) वे इस प्रकार (संमुच्छिमा य गन्मयक्कंतिया य) संमूछिम और (एएसि णं एवमाइयाणं पज्जत्ता पज्जत्ताणं) २ प्रमाणे 20 पर्यात भने अपर्यास (उरपरिसप्पाणं) ७२५रिसोना (दस जाई कुलकोडिजोणियप्पमुहसयसहस्साई) श स जति स योनि प्रवाड (भवंतीति मक्खायं) थाय छ, मे घुछे (से त्तं उरपरिसप्पा) २॥ ७२५२सपनी ५३५४ २४ (से किं तं भूयपरिसप्पा ?) भु०४५२ सपा प्रजाना छ? (अणेग विहा पण्णता) मने ५२ना या छे (तं जहा) ते॥ २॥ प्रारे (नउला) नजीया (सेहा) सेड (सरडा) स२८ अर्थात् आय२८ (सल्ला) शस्य (सरंठा) स२५ (सारा) सा२ (खोर।) २ (घरोइल्ला) 23 leu (विस्संभरा) विसम२॥ (मूसा) ४२ (मुगुंसार) ollasी (पयलाइया) पायसति: (छोरविरालिया) क्षीर विसि (जहा चउप्पाइया) या२ ५नी समान नवा नये (जे यावन्ने तहप्पगारा) मीनगर सेवी तना छ (ते समासओ दविहा पण्णत्ता) ते सये ४रीने में ५४१२॥ ४i छ (तं जहा) ते २मा प्रसार શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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