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________________ ३७० प्रज्ञापनासूत्रे पर्याप्तानाम् अर्द्धत्रयोदशजातिकुलकोटियोनि प्रमुखशतस हास्रणि भवन्तीत्याख्यातम् । ते एते जलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः ॥सू०३१॥ टीका-अथ तेषु जलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकान् प्ररूपयितुमाह-'से किं तं जलयरपंचिंदियतिरिवख जोणिया?' अथ के ते, कतिविघा इत्यर्थः जलचर पशेन्द्रियति यग्योनिकाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'जलचरपंचिंदियतिरिवखजोणिया पंचविहा पप्णत्ता' जलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा-'मच्छा १, कच्छमार, गाहा ३, मगरा ४, सुसुमारा ५,' मत्स्याः , कच्छपाः, ग्राहाः, मकराः, शिशुमाराश्च जलजन्तुविशेषाः, तेषु मत्स्य भेदान् प्ररूपयितुमाह-'से किं तं मच्छा ?' 'से' अथ 'किं तं' के ते-कतिविधाः ‘मच्छा' जलचरपंचेन्द्रिय तिर्थचयोनिकों के (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्त और अपर्याप्त के (अद्धतेरस जाइकुलकोडि जोणिप्पमुहसयसहरसाई) साढे वारह लाख जाति कुलकोटियों के योनिप्रवह (भवंतीतिमक्खायं) होते है, ऐसा कहा है (से तं जलयरपंचिंदिय तिरिव खजोणिया) यह जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की प्ररूपणा हुई ॥३१॥ टीकार्थ-अब जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की प्ररूपणा की जाती है। प्रश्न है कि जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यच कौन हैं अर्थात् वे कितने प्रकार के हैं ? भगवान् उत्तर देते हैं-जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव पांच प्रकार के कहे गए हैं । वे ये हैं-(१) मच्छ (२) कच्छप (३) ग्राह (४) मकर और (५) सुसुमार। मत्स्य कितने प्रकार के हैं ? भगवान् ने कहा-मत्स्य अनेक प्रकार के होते हैं । वे इस प्रकार हैं- लक्ष्ण मत्स्य, खवल्ल मत्स्य, जुंगमत्स्य, यर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं) भ२७ विगैरे २ सय२ पथन्द्रिय तिय"य योनिछीनी (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्त मने मर्यात (अद्धतेरस जाई कुल कोडियो जोणिप्पमुहसयसहस्साई) सा. मा२ सालतिर टियाना योनि वाड (भवंतीति मक्खाय) डाय छ ओम ह्यु छ (से तं जलयरपंचिंदिय तिरिक्खजोणिया) २ २२ पयन्द्रिय तिय यानी प्र३५। ५७. ॥ सू. ३०॥ ટીકાથ–હવે જલચર પંચેન્દ્રિયેની પ્રરૂપણ કરાય છેપ્રશ્ન-જલચર પચેન્દ્રિય તિર્યંચ કેણ છે? અર્થાત્ તેઓ કેટલા પ્રકારના છે? શ્રી ભગવાન ઉત્તર આપે છે–જલચર પંચેન્દ્રિય તિયચ જીવ પાંચ પ્રકારના डिसा छ.-(१) मत्स्य (२) ४२७५ (3) श्राड (४) भ४२ मने (५) सुसुमार. મસ્ય કેટલા પ્રકારના છે? શ્રી ભગવાને કહ્યું મત્સ્ય અનેક પ્રકારના હોય છે તે આ પ્રકારે છે શ્લષ્ણુ મત્સ્ય, અવલ્લ મસ્ય, જુગમસ્ય, વિજઝટિત મત્સ્ય, હલિમસ્ય, શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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