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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३१ समेदजलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः ३६९ तयथा-सोण्डमकराश्च १, मृष्टमकराश्च २, । ते एते मकराः ४ । अथ के ते शिशुमाराः ? शिशुमारा एकाकाराः प्रज्ञप्ताः, ते एते शिशुमाराः ५। ये चान्ये तथा प्रकाराः, ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-संमूर्छिमाश्च गर्भव्युक्रान्तिकाश्च । तत्र खलु ये ते संमूर्छिमास्ते सर्वे नपुंसकाः । तत्र खलु ये ते गर्मव्युत्क्रान्तिकास्ते त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-स्त्रियः १, पुरुषाः २, नपुं. सकाथ ३ । एतेषां खलु एवमादिकानां जलचर पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पर्याप्ता पण्णत्ता) मकर दो प्रकार के हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (सोंड मगरा य मट्ठमगरा य) सौण्ड मकर और मृष्ट मकर (से त्तं मगरा) यह मकर की प्ररूपणा हुई। ___ (से किं तं सुंसुमारा ?) सुसुमार कितने प्रकार के हैं ? (एगागारा पण्णत्ता) एक ही प्रकार के कहे हैं (से तं सुसुमारा) यह सुसुमार की प्ररूपणा हुई (जे याचन्ने तहप्पगारा) इसी प्रकार के जो अन्य हैं (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता)चे संक्षेप से दो प्रकार के कहे हैं। तं जहा) वह इस प्रकार (समुच्छिमा य गन्भवतिया य) संमूर्छिम और गर्भज (तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा) उनमें जो संमूर्छिम हैं (ते सव्ये नपुं. सगा) वे सब नपुंसक हैं (तत्थ णं जे ते गम्भवक्कंतिया) उनमें जो गर्भज हैं (ते तिविहा पण्णत्ता) ये तीन प्रकार के होते हैं (तं जहा) वह इस प्रकार (इत्थी पुरिसा नपुसगा य) स्त्री पुरुष और नपुंसक (एएसि णं एबमाइयाणं जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं) इत्यादि इन भ५२ मे ४२॥ छ (तं जहा) तेसो २ प्रारे (सोडमगरा य मठु मगस य) सौ भव२ मने भृष्ट भ५२ (से तं मगरा) २॥ मध२नी प्र३५॥ ४ । (से किं तं सुसुमारा) सुसुभा२ ३८ ४२ना छ ? (सुसुमारा) सुसुमार (एगागाराय पण्णत्ता) ४० ४१२॥ ४ा छ (से तं सुसुमारा) ॥ सुस મારની પ્રરૂપણા થઈ (जे यावन्ने तहप्पगारा) मावी नतना मीत छ (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) तेमा टुभा मे ५४२॥ ४॥ छ (तं जहा) ते २॥ ४ारे (संमच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य) सभूछिम अने । (तत्थणं जे ते संमुच्छिमा) तेसोभा ने सभूछिभ छ (ते सव्वे नपुंसगा) તેઓ બધા નપુંસક છે (तत्थ णं जे ते गब्भवक्कंतिया) तेसोमा २ गम छे (ते तिविहा पण्णत्ता) तेसो ऋण प्र४१२न डाय छ (तं जहा) तया ॥ ५४॥२ छ (ईत्थी पुरिसा नपुंसगा य) स्त्री, ५३५, मने नस४ (एएसिणं एवमाइयाणं जल प्र० ४७ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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