SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रज्ञा ३६८ प्रज्ञापनासूत्रे शस्त्रिकमत्स्याः, लम्मनमत्स्याः, पताकातिपताका , ये चान्ये तथाप्रकाराः, ते एते मत्स्याः १ । अथ के ते कच्छपाः ? कच्छपा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाअस्थिकच्छपाश्च१, मांसकच्छपाश्च२ ते एते कच्छपाः.२। अथ के ते ग्राहा:? ग्राहाः पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-दिली १, वेटकाः २ मूर्धजाः ३, पुलकाः ४, सीमाकाराः ५, ते एते ग्राहाः ३ । अथ के ते मकराः ? मकरा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, नक (तंदुलमच्छा) तन्दुल मत्स्य (कणिक्कामच्छा कणिक्का मत्स्य (सालिसत्थियामच्छा) शलिशस्त्रिक मत्स्य (लंमणमच्छा) लंभन मत्स्य (पडागा) पताका (पडागाइपडागा) पताकातिपतागा (जे यावन्ने तहप्पगारा) इसी प्रकार के जो अन्य हैं। (से तं मच्छा) यह मत्स्यों की प्ररूपणा हुई (से किं त्तं कच्छभा ?) कच्छप कितने प्रकार के हैं ? (दुविहा पण्णत्ता) दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (अट्टिकच्छभा य मंसकच्छभा य) अस्थिकच्छप और मांसकच्छप (से त्तं कच्छभा) यह कच्छपों की प्ररूपणा हुई। (से किं तं गाहा ?) ग्राह कितने प्रकार के हैं ?) (पंचविहा पण्णत्ता) पांच प्रकार के कहे हैं (तं जहा) चे इस प्रकार (दिली) दिली (वेढगा) चेटक (मुद्धया) मूर्धज (पुलया) पुलक (सीमागारा) सीमाकार (से तं गाहा) यह ग्राह की प्ररूपणा हई। (से किं तं मगरा ?) मकर कितने प्रकार के हैं ? (मगरा दुविहा तिमितिभिilan (णका) न४ (तंदुलमच्छा) तन्दुस भत्स्य (कणिक्का मच्छा) ४४४ मत्स्य (सालिसत्थिया मच्छा) २८ स्त्रि मत्स्य (लंभणमच्छा) लन मत्स्य (पडागा) yas (पडागाइ पडागा) पततिपता॥ (जे यावन्ने तहप्पगारा) मेवी सतनामी छ (से तं मच्छा) मा भत्त्यानी प्र३५॥ २४ (से किं तं कच्छभा) ४२७५ ॥ २॥ छ ? (कच्छभा) ४२७॥ (दुविहा पण्णत्ता) मे २0 ४ा छे (तं जहा) तेथे॥ २॥ ४२ (अद्वि कच्छभा य मंस कच्छभाय) मारथ ४२७५ मने मांस ४२७५ (से तं कच्छभा) આ કચ્છની પ્રરૂપણું થઈ (से किं तं गाहा) आड ४८॥ ४॥२॥ छ ? (गाहा) पाडा (पंच विहा पण्णता) पाय ४२॥ ४॥ छ (तं जहा) तेस। २॥ ५४२ छ (दिली) हसी (वेढगा) वेढ४ (मुद्धया) भू (पुलया) पुस (सीमागारा) सीमा४१२ (से तं गाहा) 24. पानी प्र३५॥ २४ । (से किं तं मगरा) भ५२ ८१॥ ५४२॥ छ ? (मगरा दुविहा पण्णत्ता) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy