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प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.१९ सभेदयनस्पतिकायनिरूपणम् २८३ माष कोदंशाः, शण-सर्षप - मूलकबीजानि, एते फलपाकानन्तर विशीर्यमाणत्यात् औषधिपदेन व्यपदिश्यन्ते ते च प्रसिद्धाः ।
मूलम्-से किं तं जलरुहा ? जलरुहा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-उदए१ अवए२ पणए३ सेवाले४ कलंबुया५ हटेय६ कसेरुया७ कच्छमाणीट उप्पले ९, पउमे१० कुमुदे११ गलिणे१२ सुभए१३ सुगंधिए१४ पोंडरीयए१५महापुंडरीयए१६ सयपत्ते१७ सहस्सपत्ते १८ कल्हारे १९ कोकणदे २० अरविंदे२१ तामरसे२२ भिसे २३ भिसमुणाले२४ पोक्खले२५ पोक्खलस्थिभुए२६। जे यावन्ना तहप्पगारा । से तं जलरुहा ॥११॥
छाया-अथ के ते जलरुहाः ? जलरुहा अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-उदकम्। अवर्कर पनकं३ शैवालः४ कलम्बुकाः ५ हठः६ कशेरुकाः७ कच्छभाणी८ उत्पलं सतीण, पलिमंथ, अलसी, कुसुंभ, कोद्रय, कंगू, रालक, सांबा कोदंश, शण, सरसौं मूलक, बीज, ये सब फल-पाक के अनन्तर नष्ट हो जाने के कारण ओषधि शब्द के चाच्य हैं और प्रसिद्ध हैं। __ शब्दार्थ--'से किं तं जलसहा' जलरुह कितने प्रकार के हैं ? (अणेगविहा) अनेक प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं-(उदए) उदक, (अवए) अवक (पणए) पनक, (सेवाले) शैवाल (कलंबुया) कलम्बुका, (हढे) हठ, (कसेरुया) कशेरुका, (कच्छभाणी) कच्छभाणी, (उप्पले) उत्पल, (पउमे) पद्म (कुमुदे) कुमुद, (णलिणे) नलिन (सुभए) सुभग (सुगंधिए) सौगंधिक, (पोण्डरीए) पुण्डरीक, अपनी onत, साय (42) मसूर, तस, भग, निपाय, ४थी मासिसन्ह. सती, पसिनाथ, मसी, सुन, ६२, ४in. २, सामाश, शण સરસવ. મૂલાના બીજ. આ બધાં ફળ પાક પછી નષ્ટ થઈ જાય છે એ કારણે ઔષધિ શબ્દના વાય છે. અને પ્રસિદ્ધ છે.
शहा-(से किं तं जलरुहा) १६३७ डेटा प्रा२ना द्या छ ? (जलरुहा) ४१३। (अणेग विहा) मने प्रा२ना (पण्णत्ता) ४i छ (तं जहा) तया
॥ ५४॥२ छ (उदए) ४ (अवए) २०१४ (पणए) पन (सेवाले) सेवाण (कलं, बया) या (हढे) 3 (कसेरुया) ४२३४॥ (कच्छभाणी) ४२७माणी (उप्पले) S५स (पउमे) ५५ (कुमुदे) मुह (णलिणे) नासन (सुभए) सुभा (सुगंधिए) सुगधि (पोण्डरीए) 313 (महापांडरीए) भडारी (सयपत्ते) शतपत्र
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧