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________________ २८२ प्रज्ञापनासूत्रे टीका-अौषधिभेदान् प्ररूपयितुमाह-से किं तं ओसहीओ ?' 'से' अथ 'किंतं' कास्ताः-कतिविधा-इत्यर्थः, औषधयः प्रज्ञप्ता । भगवानाह- ओसहीओअणेगविहाओ पण्णत्ताओ' औषधयः-फलपाकान्ताः-शालिप्रभृतयः, 'अणेगविहा' अनेकविधाः-नानाप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः, ता एवाह-'तं जहा-साली-वीही-गोधूमजवजवजवा कलमसूरतिलमुग्गमासणिप्फावकुलत्थआलिसंदसतीणपलिमंथा, अयसी कुसुंभकोदवकंगूरालगमासकोदंसा सणसरिसवमूलगवीया' 'साली'-शालिः 'वीही' बीहिः, गोधूमः, यवाः, यवयवाः, कलाय मसूर तिलमुद्माष निष्पावकुलत्थाऽऽलिसन्दसतीणपलिमन्थाः, अतसी, कुसुम्भ-कोद्रवौ, कङ्गु-रालक (जवजवा) यवयचा (कल) कलाय (मसूर) मसूर, (तिल) तिल, (मुग्ग) मुद्ग-मूंग, (मास) माष-उडद, (णिप्फाय) निष्पाय, (कुलत्थ) कुलथ,(आलिसंदग) आलिसन्द, (सतीण) सतीण, (पलिमंथा) पलिमन्थ, (अयसी) अतसी-अलसी, (कुसुंभ) कुसुम्म, (कोद्दय) कोदों, (कंगू ) कगू (रालग) रालक, (साम) सामा (कोइंस) कोदंश (सण) शण-सन, (सरिसव) सरसों, (मूलिगबीया) मूलकबीज, (जे यायन्ने तहप्पगारा) अन्य जो इसी प्रकार के हैं। (से तं ओसहीओ) यह ओषधि की प्ररूपणा हुई। टीकार्थ--अब ओषधि के भेदों की प्ररूपणा करते हैं-प्रश्न किया गया कि ओषधियां कितने प्रकार की कही हैं ? भगवान् ने उत्तर दिया-ओषधियां अनेक प्रकार की कही गई है। शालि आदि जो वनस्पतियां फल-पाक के पश्चात् ही सूख जाती हैं, उन्हें ओषधि कहते हैं। उनके भेद इस प्रकार हैं-शालि, ब्रीहि, गेहूं, जौ, यययय (जो का एक प्रकार) (कलाय) मसूर, तिल, मूग, निष्पाव, कुलथ, आलिसन्द, (जयजया) ४५या (कल) ४ाय (मसूर) भसू२ (तिल) तस (मुग्ग) भा (मास) मह (णिप्फाव) निपाव (कुलत्थ) ४सथी (आलिसद) मासिसन्ह (सतीण) सता (पलिमंथा) पतिभन्थ (अयसी) मसी (कुसुभ) सुन (कोदव) १२॥ (कंगू) ४in (रालग) २२ (साम) साम। (२०७४) (कोदंस) Ea (सण) शY (सरिसब) सरस५ (मूलगबीया) भूत मी (जे यावन्ने तहप्पगारा) मी २५॥ ४२॥ छ (से तं ओसहीओ) २0 औषधियो उपाय छे. ટીકાથ–હવે ઔષધિના ભેદની પ્રરૂપણ કરે છે પ્રશ્ન કરાયોકે ઔષધિઓ કટલા પ્રકારની કહેલી છે? શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપે–ઔષધિઓ અનેક પ્રકારની કહેલી છે. શાલી વિગેરે ઔષધિયે (વનસ્પતિ) ફલ પાક થયા પછી સૂકાઈ જાય છે માટે તે औषधियो छे. ते मे २0 शत छ-सि-बीड (2) ९, ४५, य१य१, શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧
SR No.006346
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1029
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size59 MB
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