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________________ ९५२ जीवाभिगमसूत्रे हाए सव्व उवरिल्ले तारारूवे ? गोयमा ! सव्व हेठिल्लाओ णं दसहिं जोयणेहिं सूरविमाणे०, णउतीए जोयणेहिं अबाहाए चंदविमाणे०, दसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वोवरिल्ले तारारूवे०' सर्वाधरतनात् खलु भदन्त ! तारारूपात कियदबाधया कृत्वा सूर्यविमानं०, कियदबाधया कृत्वा चन्द्रविमानं०, कियदबाधया कृत्वा सर्वोपरितनं ताराविमानं चारं चरती ? भगवानाह-हे गौतम ! सधिस्तनात् तारारूपात् दशयोजनानि सूर्यविमानं०, ततस्तारामण्डलात्-नवतिं योजनानि अबाधया कृत्वा चन्द्रविमानं०' तत एव अधस्तनातारारूपाद् दशोत्तरं योजनशतम् अवाधया कृत्वा सर्वोपरितनं तारारूपं ज्योतिष मण्डलगत्या चारं चरतीति संक्षिप्तोऽर्थः । 'सूरविमाणाओ णं भंते ! केवइयं अबाहाए चंदविसब से नीचे जो तारारूप ज्योतिषी देव हैं उनसे कितने ऊपर सूर्य का विमान मंडलगति से परिभ्रमण करता है ? 'केवइयं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरइ ? केवतियं आबाहाए सव्वउवरिल्ले तारारूवे चारं चरई' कितनी दूर पर चन्द्रमा का विमान मंडलगति से परिभ्रमण करता है ? और कितनी दूर पर सब से ऊपर के जो तारारूप ज्योतिषी देव हैं उनका विमान चलता है ? इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु कहते है 'गोयमा ! सव्वहेटिल्लाओणं दसहिं जोयणेहिं सूरविमाणे चारं चरई' हे गौतम ! सब से नीचे का जो तारारूप विमान है उससे १० योजन ऊपर सूर्य का विमान चलता है ‘णउतीए जोयणेहिं अबाधाए चंदविमाणे चारं चरइ' ९० योजन ऊपर चंद्र का विमान चलता है 'दसुत्तरे जोयणसए अबाधाए सवोपरिल्ले तारास्वे चारं चरइ' और ११० योजन ऊंचे ऊपर के तारारूप विमान चलते हैं 'सूरविमाहैं। 8५२ सूर्यनु विमान भ31 तिथी ५२अभएर ४२ छ ? 'केवइयं अबा. हाए चंदाविमाणे चार चरइ केवइयं अबाहाए सव्व उवरिल्ले तारारूवे चार चाख टस २ यद्रभानु विमान में गतिथी परिश्रम ४२ छ ? भने કેટલે દૂર પર સૌથી ઉપરના જે તારા રૂપ જ્યોતિષી દે છે. તેમનું વિમાન थाले छ ? २॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ९ छ -'गोयमा ! सव्वहेछिल्लाओणं दसहि सुरविमाणे चारं चरइ हु गौतम ! सौथी नीयनु २ ता॥ ३५ विमान छ, तेनायी १० ४६ यो ५२ सूर्यन विमान यासे छे. 'णउए हिं जोयणेहि अबाधाए चंदविमाणे चारं चरइ' ८० ने यौन उ५२ यद्रन विभान याले छे. 'दसुत्तरजोयणसए अबाधाए सव्वोपरिल्ले तारारूवे चारं चरइ' અને ૧૧૦ એક સે દસ એજન ઉંચે ઉપરના તારા રૂપ વિમાન ચાલે છે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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