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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५६ विजयद्वारस्य पार्श्व योर्वर्णनम् सिंहाः रजतमयसिंहै रुपशोभितानि सिंहासनानीत्यर्थः, 'सोवणियापादा' सौवर्णिकाः पादाः-सुवर्णमयाः पादाः, 'णाणामणिमयाई पायपीठगाई' नानामणिमयानि पादपीठकानि-पादशीर्षकाणि पादानामुपरितनाः-अवयवविशेषाः 'जंबूणय मयाइं गत्ताइ' जाम्बूनदः-सुवर्णविशेष स्तन्मयानि गात्राणि, शरीराणीत्यर्थः 'वइरामई संधी' वज्रमय्यः सन्धयः-गात्राणां सन्धिमेलाः 'नानामणिमए वेच्चे नाना मणिमयं व्यूतम्-मध्यम्-व्यूतस्याओं द्रष्टव्यः, 'ते णं सीहासणा' तानि खलु सिंहासनानि 'ईहामियउसभ जाव पउमलयभत्तिचित्ता' ईहामृग वृषभ तुरगनरमकरव्यालकिन्नररुरुसरभचमरकुञ्जरवनलता पद्मलता भक्तिचित्राणि 'ससारसारोवइय विविहमणिरयणपायपीठा' ससारसारोपचितविविधमणिरत्नपादपीठानि, सारसारैः प्रधानप्रधानै विविधैरनेकप्रकारकर्मणिभिश्चन्द्रकान्तादिभिः सिंह के चित्र बने हुए हैं वे चांदी के बने हुए है । 'सोवणिया पादा' सुवर्ण के इनके पाये बने हुए है। 'णाणामणिमयाई पायपीठगाई' अनेक मणियों के इनके पादपीठ-पैर रखने के पीठ बने हुए है 'जंबूणदमयाइं गताई' इन सिंहासनों का जो कलेवर है वह जम्बूनदकासुवर्णविशेषका बना हुआ है 'वइरामई संधी' इन सिंहासनों के कलेवर की जो संधिया है दरारे है-वे वज्र रत्न की बनी हुई है। 'णाणामणिमए वेच्चे अनेकमणियों का इनका मध्यभाग बना हुआ है 'तेणं सिंहासणा ईहामिय उसभ जाव पउमलयभत्तिचित्ता' ये सिंहासन इहामृग-व्याघ्र-वृषभ-यावत्-तुरग-नर-मकर-व्याल-किन्नर रुरुसरभ, चमर-कुञ्जर-वनलता-और पद्मलता इनकी रचनाओं से चित्रित है 'ससार सारोवइय विविहमणिरयणपायपीठा' इन सिंहासनों के जो भामा सिडाना यित्री चित्रेसा छ ते याही मनेसा छे. 'सोवण्णिया पादा' सोनाना सेना पाया अनेसा छ. 'णाणामणिमयाइं पायपीठगाई' सेना पाया। ५॥रामवान पीढी मने प्र४।२ना भणियोना मनेा छ. 'जंबूणदम याइं गत्ताई' એ સિંહાસન જે કલેવર છે તે જંબૂનદ નામના સુવર્ણ વિશેષના બનેલા छ. 'वइरामईसंधी' से सिडासनना खेवानी संधियो छ अर्थात सिहासनने। સાંધાનો ભાગ છે તે વજરત્નને બનેલ છે. એટલે કે સાંધાની જે દરારે–તડે छ ते १०१२त्नथी पू२पामा मावेस छे. 'णाणामणिमए वेच्चे' सेना मध्य भाग मने प्रारना भलियोनी अनेस छ. 'ते णं सीहासणा ईहामिय उसभ जाव पउमलयाभत्तिचित्ता' से सिहासन मृग वा वृषम यावत् तु२१२ भ७२ -મઘર વ્યાલ–સર્ષ કિનર રૂરૂ સરભ અમર કુંજર વનલતા અને પદ્મલતા सनी स्यनामाथी चित्रे छे. 'ससारसारोवइय विविह मणिरयणपायपीठा' से જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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