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________________ ७४ जीवाभिगमसूत्रे णं मणिपेढियाओं' ताः खलु मणिपीठिकाः 'जोयणं आयामविक्खंभेणं' योजनम्एकयोजनप्रमाणम् आयामविष्कम्भेण, आयामो दैर्घ्य विष्कम्भो विस्तारस्ताभ्यामायानविष्कम्भाभ्याम् 'अद्धजोयणं बाहल्लेणं' अर्ध योजनं बाहल्येन-स्थौल्येन प्रज्ञप्ताः 'सव्व रयणामईओ जाव पडिरूवाओ' रत्नमय्यो यावत् प्रतिरूपा इति । 'तेसि णं मणिपेढ़ियाणं उवरि' तासां खलु मणिपीठिकानामुपरि-ऊर्ध्वभागे 'पत्तेयं पत्तेयं प्रत्येकं प्रत्येकम् ‘सीहासणे' पन्नते' सिंहासनं प्रज्ञप्तम्-कथितम् । 'तेसि णं सीहासाणाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते' तेषां खलु सिंहासनानाम अयमेतावद्रूपो वर्णावासः-वक्ष्यमाणो वर्णकनिवेशः प्रज्ञप्तः-कथित इति । 'तं जहा' तद्यथा-'तवणिज्जमया चकवाला' तपनीय मयानि चक्रवालानि-मण्डनानि सुवर्णप्रधानानि चक्रवालानि पादानामधः प्रदेशा भवन्ति, 'रजतमया सीहा' रजतमयाः पन्नत्ता' मणिपीठिका कही गई है । 'ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयामविक्खंभेणं' वे मणिपीठिकाएं लम्बाई और चौडाई में एकयोजन की है और 'अद्धजोयणं बाहल्लेणं 'मोटाई में आधे योजन की है 'सव्वरयणामईओ जाव पडिरूवाओ' ये सब मणिपीठिकाएं सर्वात्मना रत्नमय है । यावत् प्रतिरूप तक के विशेषणों वाली है इन समस्त पदों की व्याख्या पीछे की जा चुकी है। 'तेसिणं मणिपेढियाणं उवरि' इन मणिपीठिकाओं के ऊपर-उर्ध्वभाग में-'पत्तेयं पत्तेयं हर एक मणिपीठिका में 'सीहासणे-पन्नत्ते' एक२ सिंहासन कहा गया है तेसिणं सीहासणाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते' इन सिंहासनों के सम्बन्ध में वर्णन इस प्रकार का है-'तं जहा-तवणिज्जमया चक्कवाला' इनके पायों के जो अधः प्रदेश है वे तपनीय सुवर्ण के बने हुए है 'रजतमया सीहा' इन सिंहासनों पर जो अधो भाग में ममय देशलामा ‘पत्तेय पत्तेयं' २५॥ २५९५ 'मणिपेढिया पन्नत्ता' भलिपी8राय। ९स छ. 'ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयामविक्खंभेणं' ये भाष्णुिपी8मानी सामने पाडा मे योगननी छे. मने 'अद्धजोयणं बाहल्लेणं' भने तनी मोटाई मर्धा योगननी छ. 'सव्वरयणामईओ जाव पडिरूवाओ' से अधी મણિપીઠિકાઓ સર્વ પ્રકારથી રત્નમય છે. યાવત્ પ્રતિરૂપ વિગેરે વિશેષણ વાળી छ. से मधा पहोनी व्याच्या पडसा पाठ गये। छ. 'तेसि गं मणिपढियाणं उवरि' से भरा पी.मानी ५२ पत्तेयं पत्तेय' ६३४ मणि पी.wi 'सीहासणे पन्नत्ते' मे४२ सिडासन। ४ह्या छ. 'तेसिं णं सीहासणाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते' ते सिंहासनो समधी पनि ॥ शते छ. 'तं जहा तवणिज्जमया चक्कवाला' ते सिंहासनाना पायामानाने नायन माग छ, ते तपनीय सोनाने मनायेद छ. 'रजतमया सीहा' से सिहासनानी ७५२ नायना જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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