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________________ ७६ जीवाभिगमसूत्रे रत्नैश्चोपचितैः पादपीठैः सह यानि तानि तानि ससारसारोपचित विविधमणिरत्नपादपीठानि ' अच्छर गमिउमसूरगनवतयकुसंतलिच्चसी हकेसरपच्चुत्थुयाभिरामा' आस्तरकम् आच्छादनं मृदु-कोमलं येषां मसूरकाणां तानि आस्तरकमृदूनि आस्तरकविशेषणस्यापि मृदुशब्दस्य परनिपातः प्राकृतत्वात् नवा - नूतना त्वक् ते नवत्वचः कुशान्ताः दर्भपर्यन्ताः नवत्वचश्चते कुशान्ताः प्रत्यग्रत्वगृदर्भपर्यन्तरूपाणित्वति - कोमलानि - नम्र (मनः) शीलानि च केसराणि, अथवा 'सीह केसर' इति पाठस्तत्र सिंहकेसणाणीव केसराणि मध्ये मसूरकाणां तानि नवत्वकू कुशान्तलिच सिंहकेसराणि आस्तरकमृदुभिर्मसूरकैनवत्वक कुशान्तकेसरैः प्रत्यवस्तृतानि आच्छादितानि सन्ति यानि अभिरामाणि - मनोज्ञानि तानि आस्तरकमृदुमसूर कनवत्वक् कुशान्तलिच्च सिंहकेसर प्रत्यवस्तृताभिरामाणि, 'उवचिय खोमदुकूलपडिछायणा' उपचितक्षौमदकूलप्रतिच्छादनानि उपचितं - परिक पादपीठ है वे प्रधानों मे भी प्रधान ऐसे अनेक प्रकार के चन्द्रकान्त आदि मणियों से और कर्केतनादि रत्नों के बने हुए है। 'अच्छरगमिउमसूरग नवतयकुसंतलिच्चसीह केसरपत्याभिरामा' इन पर प्रत्येक पर मृदु आच्छादन वस्त्र ऊपर से विछाया गया है और आच्छादन वस्त्र के नीचे प्रत्येक वडे सिंहासन पर ऐसे गद्दे कि जिनमें नम्री भूत अग्रभागवाले और नवीन त्वचावाले दर्भतक के कोमल तृण भरे है बिछाये है और इसी कारण ये वडे अभिराम है, इस सूत्र में विशेषणों का पूर्वापर निपात प्राकृत होने से हुआ है इन सिंहासनों पर प्रत्येक सिंहासन पर जो गद्दों के ऊपर आच्छादनवस्त्र बिछाया गया है उस आच्छादनवस्त्र के ऊपर भी एक और दूसरा 'उबचियखोमदुकूल पडछायणा' उपचित - जिस पर अनेक वेलबूटे आदिबने हुए हैं - बस्त्र સિ`હાસનાના જે પાદપીડ છે તે પ્રધાનમાં પણ પ્રધાન એવા અનેક પ્રકારના शन्द्रअंतभणि विगेरे भज़ियोथी भने उतन विगेरे भजियोथी मनेा छे. 'अच्छरग मिउ मसूरंग नवतयकुसंतलिच्च सीह केसर पच्चुत्थुयाभिरामा' ते प्रत्येक पाहचीठोनी ઉપર કમળ આચ્છાદન વસ્ત્ર પાથરવામાં આવેલ છે. અને દરેક મોટા સિંહાસનેાના આચ્છાદન વસ્ત્રોની નીચે એવી ગાદી રાખવામાં આવેલ છે કે જેની અંદર નમેલા અગ્રભાગવાળા અને નવીન ત્વચા-છાલવાળા કમળ તૃણેા ભરવામાં આવેલ હાય અને એ કારણથી ઘણીજ સુંદર---કામલ જણાય છે. આ સૂત્રમાં વિશેષણાના પૂર્વાપર નિપાત પ્રાકૃત હેાવાથી થયેલ છે. એ દરેક સિ’હાસનાની ઉપર જે આચ્છાદન વજ્ર આંછાડવામાં આવેલ છે. એ આંછાડની ઉપર પણ मेड जीन्नु वस्त्र के ने 'उवचियखोम दुकूल पडिछायणा' (पत्रित लेना पर अ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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