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________________ ७२ जीवाभिगमसूत्रे तत्र तपनीयं - सुवर्ण तेन युक्तम् अतएव रुचिरं बालुकाया::- सिकतायाः प्रस्तटम् प्रतरो येषु ते तथा, 'सुहफासा' शुभस्पर्शाः सुखस्पर्शा वा 'सस्सिरीयख्वा' सश्रीकरूपाः 'पासादीया४' प्रासादीयाः दर्शनीया अभिरूपाः प्रतिरूपा इति ॥ 'तेसि णं पासायवर्डिसगाणं तेषां खलु प्रासादावतंसकानाम् ' उल्लोया पउमलया जाव सामलया भत्तिचित्ता' उल्लोकाः पद्मलता यावत् श्यामलता भक्तिचित्राः, तत्र उल्लोकाः प्रासादानामुपरितनभागाः पद्मलता यावत् श्यामलता भक्तिचित्राः, यावत्पदेन - अशोकचम्पकचूतवनवासन्तिकातिमुक्तककुन्दलतानां संग्रहः । तथा - 'सव्वतवाणजमया' सर्वतपनीयमयाः सर्वात्मना सुवर्णप्रधाना इत्यर्थः 'अच्छा जाव पडिवा' अच्छा यावत्प्रतिरूपाः । बालुका बिछी हुई है । अतएव 'सुहफासा' इनका स्पर्श अत्यंत सुखजनक है । 'सस्सिरीयत्वा' इनका रूप लुभावना है ये प्रासादावतंसक- 'प्रासादीय' दर्शनीय अभिरूप और प्रतिरूप विशेषणों वाले हैं । 'तेसिणं पासायवडिंसगाणं' इन प्रासादावतंसकों के 'उल्लोया पउमलया जाव सामलयाभत्तिचित्ता' उल्लोक - उपर के जो भाग है पद्मलताओं की रचना के जो चित्र है अशोकलताओं की रचना के जो चित्र है चम्पकलताओं की रचना के जो चित्र है चूतलताओं की रचना के जो चित्र है वनलताओं की रचना के जो चित्र है और वासातक एवं अतिमुक्तक और कुन्द लताओं के जो चित्र है वे सब सर्वात्मना तपनीयमय है तथा 'अच्छा जाव पडिरुवा' अच्छादि विशेषणों वाले हैं यावत् प्रतिरूप हैं 'तेसि णं पासायवर्डिसगाणं' इन प्रासादावतंसकों में से प्रत्येक प्रासादावतंसक में 'अंतोबहुसमरमणिज्जे युगयोथी युक्त छे. 'तवणिज्जवालुयपत्थडगा' तेनी मंदर तपनीय सोनानी वालुअ-रेत पाथरेस छे. तेथी 'सुहफासा' तेनो स्पर्श' सुमार छे. 'सस्सिरियरूवा' मेनु' ३५ सोलामा छे. थे प्रासादावत समे प्रासाहीय दर्शनीय अलिय भने अति३५ विगेरे विशेषण वाणा छे. 'तेसिं णं पासायवडिंसगाणं' मे प्रसादावतंसमां 'उल्लोया पउमलया जाव सामलया भत्तिचित्ता' उदलो એટલેકે ઉપરના ભાગ છે. તેમાં પદ્મલતાઓની રચના વાળા ચિત્ર છે. અશેક લતાઓની રચના વાળા ચિત્રો છે. ચંપકલતાની રચનાવાળા ચિત્રો છે. આમ્રલતાની રચનાવાળા જે ચિત્રા છે. વનલતાઓની રચનાવાળા જે ચિત્રા છે. અને વાસન્તિક અને અતિમુકતક અને દલતાએની રચનાવાળા જે ચિત્રા छे ते धान सर्व अक्षरे सुवर्णभय छे तथा 'अच्छा जाव पडिरूवा विगेरे विशेषशेोवाणा छे. 'तेसिंणं पासायपडिसगाणं' से आसाहावत सो बैठी छ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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