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________________ जीवाभिगमसूत्रे दधेचक्रवालपरिक्षेपेण, परिक्षेपप्रमाणाम् (१५८११३९) से णं एकाए पउमवरवेश्याए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते चिट्ठइ' सोऽयं लवण. समुद्र एकया पद्मवरवेदिकया अष्टयोजनोच्छ्रितजगत्युपरिभाविन्या एकेन च वनपण्डेन सर्वतः समन्तात् सर्वदिक्षु सर्वत्र संपरिक्षिप्तः परिवारितः खलु तिष्ठति । 'दोह वि वण्णओ' द्वयोरपि पद्मवर वेदिका वनपण्डयोवर्णनं कर्तव्यम् 'सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उद्धुं उच्चतेणं पंचधणुसर्यं विक्खंभेणं लवण समुद्द समित परिक्खेवेणं' सेसं तहेब' सा खलु पदमवरवेदिकाऽर्धयोजन मूर्ध्व मुच्चैस्त्वेन पञ्च धनुःशतानि विष्कम्भेण लवणसमुद्रसमितपरिक्षेपेण लवणसमुद्रपरिक्षेप प्रमाणा, पञ्चदशलक्षाणि (१५०००००) एकाशीतिः शतसहस्राणि शतमेकोन चत्वारिंशं च किंचि द्विशेषाधिकमिति शेषः विष्कम्भ - परिक्षेपाभ्यामन्यत्तथैव - जम्बुद्वीपपद्मवर वेदिकावनपण्डवत् । 'से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई विशेषाधिक इसकी परिधि है 'से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडे णं सव्वओ समता संपरिक्खत्ताणं चिट्ठइ' यह लवणसमुद्र एक पद्मवर वेदिका के और एक वनषण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है 'दोहवि वण्णओ' यहां पर पद्मवर वेदिका का और वनखण्ड का वर्णन कर लेना चाहिए जो इस प्रकार से है- सा णं परमवरवेइया अद्धजोयणं उडू उच्चतेणं पंचधणुसयं विक्खंभेणं लवणसमुद्द समिय परिक्खेवेण सेसं तहेव' यह पद्मवर वेदिका आधे योजन की ऊंची है और ५०० सौ धनुष चौडी है तथा लवणसमुद्र की परिधिका जितना प्रमाण कहा गया है उतना प्रमाण ही इसकी परिधि का है 'सेसं तहेव' वाकी का और सव कथन जैसा पहिले कहा गया है वैसा ही है अर्थात् जम्बूद्वीप की पद्मवर वेदिका जैसी है वैसी ही यह पद्मवर भाजीस योजनथी ४६५ विशेषाधि तेनी परिधि छे. 'से णं एगाए पउमवर वेइयाए एगेण य वणसंडे णं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठइ' मा सवा સમુદ્ર એક પદ્મવરવેદિકાથી અને એક વનખંડથી ચારે ખાજુથી ઘેરાયેલ છે. 'दोहवि वण्णओ' महीयां पद्मवर वेहिछानु भने वनउनु वर्षान पुरी सेवु लेहये ? या प्रमाणे छे - 'सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेनं पंचणुस विक्खंभेणं लवणसमुद्द समिय परिक्खेवेणं सेसं तहेव' मा पद्मवर વેદિકા અર્ધા ચેાજનની ઉંચી છે. અને ૫૦૦ પાંચસેા ધનુષની પહેાળી છે, તથા લવણુસમુદ્રની પરિધિનું જેટલું પ્રમાણ છે એટલુ' જ પ્રમાણુ આ પદ્મવર वेहानु' छे, 'सेस तद्देव' माडीनु मी सघ उथन पडेसां ने प्रमाणे કહેવામાં આવેલ છે એ જ પ્રમાણે છે, અર્થાત્ જ ખૂદ્દીપની પદ્મવરવેદિકા જેવી ५०६ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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