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________________ ५०५ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू. ८१ लवणसमुद्रवर्णनम् 'गोयमा !" हे गौतम ! 'समचक्वालसंठिए नो विसमचक्कवालसंठिए' समचक्रवालसंस्थितः सर्वत्र द्विलक्षयोजनप्रमाणतया चक्रवालस्य भावात्, नो विषमचक्रवालसंस्थित इति । सम्प्रति चक्रवालविष्कम्भादि परिमाण मेव पृच्छति'लवणेणं भंते ! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते' हे भदन्त ! लवणः समुद्रः खलु कियान चक्रवालविष्कम्भेण कियान परिक्षेपेण प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा-लवणेणं समुद्दे दो जोयण सयसहस्साई चक्कवाल विक्खंभेणं' हे गौतम ! द्वे योजन शतसहस्र (२०००००) खलु चक्रवाल विष्कम्भेण लवणः समुद्रः प्रख्यातो भुवि, जम्बूद्वीप विष्कम्भादेतद्विष्कम्भस्य द्विगुणत्वात् । ‘पन्नरस जोयणसयसहस्साई एगासीइ सहस्साई सयमेगोण चत्तालीसे किंचि विसेसाहिए लवणोदधि णो चकवालपरिक्खेवेणं' पश्चदश योजनशतसहस्राणि एकाशीतिः सहस्राणि शतम् एकोनचत्वारिंशं च किश्चिद्विशेषाधिकं लवणोसंठिए नो विसमचक्कवालसंठिए' हे गौतम ! लवणसमुद्र का संस्थान सम है विषम नहीं है । अर्थात् लवण समुद्र समचक्रवाल संस्थान वाला है विषम चक्रवाल संस्थान वाला नहीं है। 'लवणे णं भंते !" 'समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते' हे भदन्त ! लवणसमुद्र चक्रवाल की चौडाई की अपेक्षा कितना वडा है अर्थात् लवण समुद्र के चक्रवाल की चौडाई कितनी है और परिधि कितनी है उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! लवणेणं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं' हे गौतम ! लवणसमुद्र चक्रवाल की अपेक्षा दो लाख योजन का चौडा है और 'पन्नरसजोयण सयसहस्साइं एगासीइ सहस्साई सयमेगोण चत्तालीसे किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं' १५ लाख ८१ हजार एक सौ ३९ योजन से कुछ 'गोयमा ! समचक्कवालसंठिए नो विसमचक्कवालसंठिए' गौतम ! ससमुद्रनु સંસ્થાન સમ છે વિષમ નથી અર્થાત્ લવણસમુદ્ર સમચકવાલ સંસ્થાનવાળો છે. विषम यपास सस्थानवाणी नथी. 'लवणेणं मंते समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतिय परिक्खेवेणं पण्णत्ते' है भगवन् सवसमुद्र ययास पानी અપેક્ષાથી કેટલો મોટો છે ? અર્થાત્ લવણસમુદ્રના ચકવાલની પહોળાઈ કેટલી છે ? અને તેની પરિધિ કેટલી છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गोयमा ! लवणेणं समुदे दो जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं' हु गौतम! લવણસમુદ્ર ચકવાળની અપેક્ષાથી બે લાખ જન જેટલે પહેળો છે અને ‘पन्नरस जोयणसयसहस्साइं एगासीइ सहस्साई सयमेगोणचत्तालीसे किंचिविसे. साहिए परिक्खेवेणं' १५ ५४२ साप ८१ मेशी डा२ मेसे। 36 - जी०६४ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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