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________________ २५७ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६४ उपपातसभायाः वर्णनम् मणिमयी ग्रन्थिः दवरकस्यादौ येन पत्राणि न निर्गच्छन्ति, 'अंकमयाई पत्ताई' अङ्कमयान्यङ्करत्नमयानि पत्राणि, 'वेरुलियमए लिप्पासणे' वैडूर्यमयं लिप्यासनम्, मषीभाजनम्, 'तवणिज्जमई संकला' तपनीयमयी श्रृंखला मषीभाजनस्था' रिटमए छादणे' रिष्टमयमुपरितनं मपीपात्रस्य छादनम् 'रिटमई मसी' रिष्टरत्नमयी मपी, 'वइरामई लेहणी' वज्रमयीलेखनी 'रिट्ठामयाई अक्खराई' रिष्टरत्नमयान्यक्षराणि 'धम्मिए सत्थे' धार्मिक शास्त्रम् ‘ववसायसभाए गं उम्पि' व्यवसायसभाया ऊर्ध्वभागे 'अट्ठ मंगलगा' अष्टावष्टौ मङ्गलकानि 'झया छत्ताइछत्ता' उत्तिमा गारा' ध्वजाः कृष्णनीलादिकाश्छत्रातिच्छत्राणि-उत्तमप्रकाराणि इति । 'तीसेणं है 'नानामणिमयीगंठी' अनेक मणियों की इन दोरों में गांठे लगी हुई है 'अंकमयाइं पत्ताई' अङ्करत्नमय इसके पत्र है । 'वेरुलियमए लिप्पासणे' वैडूर्यरत्न के दाबात मषीपात्र है 'तवणिज्जमई संकला' मषीपात्र में जो सांकल लगी हुई है वह तपनीय सुवर्ण की है 'रिहमये छायणे' मषी पात्र का जो छादन-ढक्कन-है बह रिष्ट रत्न का है 'रिट्ठमई मसी' और इस में जो स्याही है वह रिष्ट रत्न की बनी हुई है 'रिट्ठमयाई अक्खराई' इस पुस्तक रत्न के जो अक्षर हैं वे रिष्ट रत्न के बने हुए है 'धम्मिए सत्थे यह पुस्तक रत्न धर्म शास्त्र का है 'ववसाय सभाए उचि' इस व्यवसाय सभा के ऊपर 'अट्ठ मंगलगा' आठ आठ मांगलिक द्रव्य है 'झया' कृष्ण नील आदि वर्णों की ध्वजाएं हैं 'छत्ताई छत्ता' और सोलह प्रकार के रत्नों से खचित होने के कारण उत्तम अलंकार के छत्रातिछन्त्र हैं। 'तीसेणं ववसायसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं एगे महं पुस्तनपान। पशवेस छ. 'नाना मणिमयागंठी' से हरामा भने ४ मणियोनी गांड माउस छे. 'अंकमयाई पत्ताई' २४ २त्नमय तना पानामा छ. 'वेरुलियमए लिप्पासणे' वैडूय २८नना मडिया छ. 'तवणिज्जमई संखला' ते मायामा २ सim सास छ ते तपनीय सोनानी छ. 'रिदमए छायणे' ते मठियानु रे ढi छ त २ट २त्ननु छ. 'रिद्रमई मसी' भने तमा २ शाही छ ते विष्ट २त्ननी अनेस छ. 'वइरामयी लेहणी' ४सम १०१ २त्ननी अनेस छे. 'रिदमयाई अक्खराई' से पुस्तम अक्षरे। सा छे ते शिष्ट २त्नना अनेस छ. 'धम्मिए सत्थे' । पुस्त४ २त्न धाभि शास्त्रनु छ. 'ववसायसभाए उप्पिं मा व्यवसाय समानी ५२ 'अटु मंगलगा' 2408 218 भास द्रव्यो छ. 'झया' ४५५, नीस विरोरे २ गोनी चाया छ. 'छत्ताइ छत्ता' मने छाति छत्री से प्रा२ना रत्नोथी 3 उत्तम म २ युटत छ. 'तीसे णं ववसायसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं एगे महं बलिपेढे पन्नत्ते' से व्यवसाय समानी शान मां जी०३३ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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