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________________ जीवाभिगमसूत्रे ववसायसभाए' तस्याः खलु व्यवसायसभायाः 'उत्तरपुरत्थिमेणं' ऐशान्याम् 'एगे महं बलिपेढे पन्नत्ते' एको महान् बलिपीठ: प्रज्ञप्तः, स च बलिपीठ: - 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' द्वे योजने आयामविष्कम्भाभ्याम् 'जोयणं बाहल्लेणं' योजनमेकं पृथुत्वेन, 'सव्वरययामए अच्छे जाव पडिरूवे' सर्वथा रजतमयोऽच्छ आकाशवत् यावत् श्लक्ष्णो लण्हो नीरजस्को निर्मलो निष्पङ्कः निष्कण्टकच्छायः सप्रभः सोद्योतः समरीचिकः प्रासादीयो दर्शनीयोऽभिरूपः प्रतिरूपः 'एत्थ णं तस्सणं बलिपेदस्स' अत्र खलु तस्य खलु बलिपीठस्य, 'उत्तरपुरत्थिमेणं 'उत्तरपूर्वस्यां दिशि, एगा महं णंदा पुक्खरिणी पण्णत्ता' महत्येका नन्दा नाम्नी पुष्करिणी प्रस्तुता, सार्ध त्रयोदशयोजनानि - आयामतः, क्रोशाधिकानि षड्योज - नानि विष्कम्भेण, दशयोजनानि - उद्वेधाऽच्छा श्लक्ष्णा यावत् प्रतिरूपा एत देवाह - 'जं चेव माणं हरयस्स तं चैव सव्वं' यदेव प्रमाणं हृदस्य तदेव सर्व नन्दा पुष्करिण्या अपि इति ||सू० ६४॥ २५८ बलिपेढे पण्णत्ते' इस व्यवसाय सभा की ईशान दिशा में एक विशाल बलिपीठ है यह बलिपीठ 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' लम्बाई चौडाई में दो योजन का है 'जोयणं बाहल्लेणं' और मोटाई में एक योजन का है 'सच्चरययामए अच्छे जाव पडिरूवे' यह सर्वात्मना चांदी का बना हुआ है तथा यह आकाश और स्फटिक मणि के जैसा निर्मल है यावत् प्रतिरूप है। यहां यावत् शब्द से श्लक्ष्ण' आदिविशेषणों का संग्रह हुआ है 'तस्स णं बलिपेढस्स उत्तरपुरत्थिमेणं' इस बलिपीठ की ईशान दिशा में 'एगा महं णंदा पुक्ख रिणी पण्णत्ता' एक विशाल नंदा पुष्करिणी है यह लम्बाई में १२ ॥ | योजन की है और चौडाई में ६ | योजन की है तथा इसका उद्देध दस योजन का हैं यह ४ विशाल सिपी राजवामां आवे छे. ये मसिपीड 'दो जोयणाइंआयामविक्खंभेणं' सौंजार्ध यहोणाभां मे योन्टननु' छे. 'जोयण बाहल्लेणं' अने तेनेो विस्तार भे योजना छे. 'सव्वरययामए अच्छे जाव पडिरूवे' मे सर्व रीते यांहीनु અનેલ છે. તથા તે આકાશ અને સ્ફટિક મણિના જેવું નિળ છે, યાવપ્રતિ રૂપ છે. અહીંયાં યાવપદથી ‘′′’ વિગેરે વિશેષણાના સગ્રહ થયેલ છે. 'तस्स णं बलिपेढरस उत्तरपुरत्थिमेणं' मा यदि पीडनी ईशान दिशाभां 'एगा महं णंदा पुक्खिरिणी पण्णत्ता' मे विशास नंही पुण्डरिणी छे. ते संखाभां ૧૨ા સાડા બાર ચેાજનની છે. અને પહેાળાઇમાં ૬ા સવા છ ચેાજનની છે. તથા તેના ઉદ્વેષ દશ ચૈાજનના છે. તે અચ્છ વિગેરે વિશેષણા વાળી છે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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