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________________ २५६ जीवाभिगमसूत्रे पन्नता' व्यवसायसभा कथिता, अभिसेयसभावत्तव्वया जाव सीहासणं अपरिवार' अभिषेकसभावत व्यता यावसिंहासनमपरिवारम्, इयश्च व्यवसायसभाऽभिषेकसभावत् प्रमाण-स्वरूप-द्रारत्रय- मुखमण्डप प्रेक्षागृहमण्डपादि वर्णन प्रकारेण तावद्वक्तव्या यावद्रभद्रासनाद्रि परिवाररहितं सिंहासनम् इति । अत्र सिंहासने 'विजयस्स देवस्स' विज यस्य देवस्य 'एगे महं पोत्थयरयणे' महदेकं पुस्तकरत्नम् 'संनिविखत्ते चिट्ठइ' सन्निश्रितं तिष्ठति 'तस्स णं-पोत्थयरयणस्स' तस्य खलु पुस्तकरत्नस्य, 'अयमे यारूवे वण्णावासे पन्नते' अयमेतद्रूपो वक्ष्यमाणप्रकारको वर्णावासो वर्णकः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा' तद्यथा-'रिटमईओ कंविकाओ' रिष्ठ मय्यौ-रिष्टरत्नमये कविके पुष्टके प्रज्ञप्त, 'तवणिज्जमए दोरे' तपनीयमयोदवरकः यत्र पत्राणि प्रोप्तानि (अनुस्यूतानि) वर्तन्ते, 'नानामणिमयागंठी' नानामहं ववसायसभा पन्नत्ता' एक विशाल व्यवसाय सभा हैं 'अभिसेय सभा वतव्वया जाव सीहासणं अपरिवारं' यह व्यवसाय सभा अभिषेक सभा की तरह के प्रमाण युक्त है इस में तीन द्वार है उनके आगे मुखमंडप है मुखमण्डपों के आगे प्रेक्षागृह मंडप है इत्यादि सबका वर्णन यहां पर सिंहासन के वर्णन तक कर लेना चाहिये परन्तु सिंहासन के वर्णन में उसके परिवार भूत सिंहासनों का वर्णन नहीं करना चाहिये इस सिंहासन पर विजयस्स देवस्स 'एगे महं पोत्थपरयणे संनिक्खित्ते चिट्ठइ' विजय देव का एक विशाल पुस्तक रत्न रखा हुआ है 'तस्सणं पोत्थयरयणस्स अयमेयारवे वाणावासे पन्नत्ते' इस पुस्तकरत्न का वर्णन इस प्रकार से है-'रिटमईओ कंबिकाओ' इसके जो पुढे हैं वे रिष्ट रत्न के बने हुए है । 'तवणिजमए दोरे' डोरे इनके तपनीय सुवर्ण के बने हुए है कि जिनमें पुस्तक के पत्र पोये हुए 'एत्थ णं एगा महं ववसायसभा पन्नत्ता' 2 विशा व्यवसाय समा छ. २॥ વ્યવસાય સભા અભિષેક સભાના પ્રમાણ જેટલા પ્રમાણ વાળી છે. તેમાં ત્રણ દ્વારો છે. તેની આગળ મુખ મંડપ છે. મુખમંડપની આગળ પ્રેક્ષાગૃહ મંડપ છે. વિગેરે પ્રકારથી તમામ વર્ણન અહિંયાં સિંહાસનના વર્ણન સુધી કરી લેવું પરંતું સિંહાસનના વર્ણનમાં તેના પરિવાર રૂપ સિંહાસનું વર્ણન કરવાનું नथी. ये सिडासननी ५२ ‘विजयरस देवस्स एगे महं पोत्थयरयणे संनिक्खि त चिट्टई' विय वनु से विशाण पुस्त५ २त्न २५वामी मावेस छ. 'तत्थ णं पात्थ यरयणस्स अयमे यारूवे वण्णावासे पण्णत्ते' । पुस्त २त्ननु वएन प्रमाणे छ. 'रिदमईओ कंबिकाओ तना ही छे ते २५ २त्नना अने छ. 'तवणिज्जमए दोरे' तेन होस तपनीय सोनाना अनेसा छे. मां જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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