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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. १० सू. १४७ जीवानां चातुर्विध्यनिरूपणम् १४४७ 'साईयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नेणं एकं समयं उक्कोसेणं देणा पुच्वकोडी' सादिकस्य सपर्यवसितस्य जघन्येनैकं समयम्, उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटि : असंयतत्व व्यवधायकस्य संयतकालस्योत्कर्षत एतावत्कालप्रमाणत्वात् । 'चउत्थस्स णत्थि अंतरं' त्रितयप्रतिषेधवर्तिनः सिद्धस्य सायपर्यवसितस्य चतुर्थकस्य नास्त्यन्तरम् अपर्यवसिततया सदा तद्भावाऽपरित्यागात् । 'अप्पाबहु०' एषामल्पबहुत्वे 'सव्वत्थोवा संजया' सर्वस्तोकाः संयताः संख्ये यकोटीकोटीप्रमाणत्वात् । 'संजया संजया असंखेज्जगुणा' एभ्यः संयतासंयता असंख्येयगुणाः असंख्ये यानां तिरवां देशविरति भावात् । 'नो संजय नो असंजय नो संजया संजया के असंयत को जो संयम प्राप्त हो जाता है उसका प्रतिपात नहीं होता है । तथा- - जो सादि सपर्यवसित असंयत है उसका अन्तर जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि का अन्तर है । क्योंकि असंयत का व्यवधायक जो संयत काल है उसका अथवा संयतासंयत काल का प्रमाण उत्कृष्ट से इतना ही कहा गया है । 'उत्थस्स णत्थि अंतरं' त्रितय प्रतिषेधवर्ती सिद्ध के सादि सपर्यवसित होने से अन्तर नहीं होता है। क्योंकि अपर्यवसित होने के कारण उनके उस भाव का भी परित्याग नहीं हो सकता है । 'अप्पा बहु० ' इनके अल्पबहुत्व का विचार इस इस प्रकार है'सव्वत्थोवा संजया' सयंत जीव सब से कम है- क्योंकि इनका प्रमाण संख्यात कोटी कोटी का कहा गया है 'संजयासंजया असंखेज्जगुणा, नो संजय नो असंजय नो संजयासंजया अनंतगुणा' इनकी अपेक्षा संयता હેતું નથી. કેમકે પહેલા વિકલ્પવાળા અસયત અપ વસિત છે. તથા ખીજા પ્રકાર ના અસચતા ને જે સંયમ પ્રાપ્ત થઇ જાય છે. તેનેા પ્રતિપાત થતા નથી. તથા જે સાર્દિ સપતિ અસંયત છે, તેનુ અંતર જઘન્યથી એક સમયનુ છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી દેશે!ન પૂર્વકેટિનુ અંતર છે. કેમકે-અસ યતાના વ્યવધાનવાળા જે સયત કાળ છે તેનું અથવા સ યતાસયતકાળનું પ્રમાણ उत्सृष्टथी भेट ४ वामां आवे छे. 'चउत्थस्स नत्थि अंतरं' प्रहार થી પ્રતિષેધવાળા સિદ્ધને તેએ સાદિ સપ વસિત હાવાથી અ ંતર હેાતું નથી. કેમકે અપ વસિત હેાવાથી તેનાથી એ ભવના કોઈ પણ સમયે ત્યાગ થઇ शतो नथी. 'अप्पाबहु०' तेभना मध्य महुयणानो विचार या प्रमाणे छे'सव्वत्थोवा संजया' संयंतलव सौथी गोछा छे म तेनु प्रमाणु संख्यात अटि अटीनु उडेवामां आवे छे. 'संजयासंजया असंखेज्जगुणा' नो संजय नो असंजय नो संजया संजया अनंतगुणा' तेना रतां संयता સંયતજીવ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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