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________________ १३८२ जीवाभिगमसूत्रे उत्कर्षेणानन्तं कालं वनस्पतिकालः । 'अभासगस्स०' अभाषकस्य भदन्त ! कियकालमन्तरम् ? गौतम ! एष द्विविधः-तत्र 'साईयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं' सादिकस्यापर्यवसितस्यान्तरं नास्ति, 'साईय सपज्जवसियस्स जहन्नेणं एक समयं-उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं' सादिसपर्यवसितस्य जघन्येनैकं समयम्-उत्कर्षेणाऽन्तर्मुहूर्तम् । 'अप्पाबहु०' अल्पबहुत्वं भदन्त ! भाषकाणामभाषकाणां च कतरे कतरेभ्यः प्रतीक्षन्ते ? भगवानाह-गौतम ! 'सव्वत्थोवा भासगा' सर्वस्तोकाः भाषकाः 'अभासगा अणंतगुणा' अभाषका अनन्तगुणाः। 'अहवा-दुविहा सव्वजीवा' अथवा द्विभेदवन्तः सर्वजीवाः, तद्यथा-ससरीरी य-असरीरीय असरीरी कहते हैं-हे गौतम ! 'जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्को० अणंत कालं वणस्सइकालो' भाषक का अन्तर काल जघन्य से तो अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल प्रमाण है । 'अभासग० साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं' सादि अपर्यवसित अभाषक का अन्तर काल अभाषक की अपर्यवसितता में है ही नहीं और जो सादि अपयवसित अभाषक है उसका अन्तर काल जघन्य से तो एक समयं' एक समय का है और 'उक्कोसेणं अंतो०' उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहर्त का है। अल्पबहुत्व विचार-'अप्पा बहु० सव्वत्थोवा भासगा, अभासगा अणंतगुणा' इन भाषक और अभाषकों के बीच में सब से कम भाषक है और अभाषक इनसे संख्यातगुणे अधिक हैं। 'अहवा-दुविहा सव्व जीवा सरीरी अससरीरी य' अथवा सशरीर और अशरीर के भेद से समस्त जीव दो प्रकार के है । असिद्ध 'जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणतं कालं वणस्सइ कालो' साषन मत२४11 જઘન્યથી તે એક અન્તમુહૂર્તને છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી વનસ્પતિકાળ પ્રમાણુ छ. 'अभासगस्स साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतर' साह २०५यवसित અભાષકને અંતરકાળ અભાષકના અપર્યાવસિત પણામાં છે જ નહીં અને જે साह स५ सित समा५४ छ तेना मत२४७ ४धन्यथी तो 'एक्कं समय' मे सभयना छे भने 'उक्कोसेणं अतोमुहुत्तं' अष्टथी मे मतभुतना छे. २६५त्पनी विया२'अप्पा बहु सव्वत्थोवा भासगा अभासगा अणंतगुणा' २१। समाप भने ભાષકમાં સૌથી ઓછા ભાષક છે. અને અભાષક તેનાથી અનંતગણું पधारे छ. 'अहवा दुविहा सव्वजीवा ससरीरी य असरीरी य' अथवा सशरीर અને અશરીરના ભેદથી સઘળા જ બે પ્રકારના છે. અસિદ્ધોને સશરીર જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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