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________________ १३२२ जीवाभिगमसूत्रे अथ प्रथमसमयाऽप्रथमसमयानां प्रत्येकमल्पबहुत्वम् -'दोण्हं अप्पबहू' द्वयोरल्पबहुत्वम्, हे भदन्त ! प्रथमसमयाऽप्रथमसमयैकेन्द्रियद्वीन्द्रियादीनां कतरेभ्यः कतरेऽल्पा वा० प्रश्नः ? भगवानाह-गौतम ! 'सध्वत्थोवापढमसमयएगिदिया' प्रथमसमयैकेन्द्रियाः सर्वस्तोकाः: अल्पानामेकसमये द्वीन्द्रियादिभ्य आगतानामुत्पादात् । “अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा' एभ्योऽप्रथमसमयैकेन्द्रिया अनन्तगुणाधिकाः वनस्पतीनामानन्त्यात् । 'सेसाणं सध्वत्थोवा पढमसमया अपढमसमइया असंखेजगुणा' शेषाणां द्वीन्द्रियादीनां सर्वस्तोकाः प्रथमगये हैं यही वात ‘णवरं अपढमसमयएगिंदिया अणंतगुणा' इस सूत्र द्वारा प्रकट की गई है। प्रत्येक प्रथम समयवर्ती और अप्रथम समयवर्ती एकेन्द्रियादिक जीवों का अल्पबहुत्व कथन-'दोण्हं अप्प बहू' हे भदन्त ! प्रथमसमयवर्ती और अप्रथमसमयवर्ती जो एकेन्द्रिय दोइन्द्रियादिक जीव हैंइनमें कौन किनकी अपेक्षा अल्प हैं ? कौन किनकी अपेक्षा बहुत हैं? कौन किनके बराबर हैं ? और किनकी अपेक्षा विशेषाधिक हैं ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सव्वत्थोवा पढमसमयएगिदिया' हे गौतम ! सबसे कम प्रथम समयवर्ती एकेन्द्रिय जीव हैं क्योंकि ऐसे एकेन्द्रिय जीव जो कि द्वीन्द्रियादिक जीवों की पर्याय से आ करके यहां उत्पन्न होते है बहुत ही कम होते हैं । 'अपढम समय एगिदिया अणंतगुणा' इनकी अपेक्षा जो अप्रथम समयवर्ती एकेन्द्रिय जीव हैं वे अनन्तगुणे अधिक है क्योंक ऐसे एकेन्द्रियों में वनस्पति कायिक जीव भी आते हैं और वे अनन्त हैं । 'सेसाणं सव्वत्थोवा પ્રત્યેક પ્રથમ સમયવતી અને અપ્રથમ સમયવતી એકેન્દ્રિયાદિક वाना २६५ मत्यनु थन-दोण्हं अप्प बहू' हु भगवन् ! પ્રથમસમયવતી અને અપ્રથમસમયવતી જે એકેન્દ્રિય, કીન્દ્રિય. વિગેરે જીવે છે, તેમાં કયા છે કે ના કરતાં અલ્પ છે? કયા છો ક્યા જ કરતાં વધારે છે? ક્યા જી કેની બરોબર છે? અને કયા જીવે नाथी विशेषाधि छ. २॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'सव्वत्थोवा पढमसमयएगिदिया है गौतम ! सौथी यछ। प्रथम सभयवतीन्द्रिय જીવે છે. કેમકે એવા એક ઈન્દ્રિયવાળા છે કે જે બે ઈદ્રિય વિગેરે જેની पर्यायथी मावीन महीयां अपन्न थाय छे. तसा घge भ६५ छे. 'अपढम समयएगिदिया अणंतगुणा' तेना ४२di अप्रथम सभयती सन्द्रिय छ। છે, તે અનંતગણું વધારે છે. કેમકે એવા એકેન્દ્રિય જીવોમાં વનસ્પતિयि ७ ५५४ मावी तय छे. मने तेस। मन त छ. 'सेसाणं सव्वत्थोवा જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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