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________________ १२६४ जीवाभिगमसूत्रे ऽल्पा वा - बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका वा भवन्तीति प्रश्नः भगवानाह - गौतम ! 'सव्वत्थोवा बायरणिओया पज्जत्ता दव्वट्टयाए - बायरणिओया अपज्जत्तया दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा' सर्वस्तोका बादरनिगोदा मूलकन्दादिगताः पर्याप्ता द्रव्यार्थतया भवन्ति प्रतिक्षेत्रवर्तित्वात् - ( एभ्यः) अपर्याप्तबादर निगोदा द्रव्यार्थतया संख्येयगुणा एकैक पर्याप्तवादर निगोदनिश्रयाऽसंख्येयानामपर्याप्तानां बादरनिगोदनामुत्पादात् । 'मुहुमणिओया अपज्जत्तया दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा' एभ्योऽपर्याप्तबादरनिगोदेभ्योऽपर्याप्त सूक्ष्मनि गोदा द्रव्यार्थतया संख्येयगुणाः सकललोकापन्नतया क्षेत्रस्याऽसंख्येयगुणत्वात् 'सुहुमणिओया पज्जत्तया दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा एभ्यः सूक्ष्मनिगोदाः पर्याप्तका द्रव्यार्थतया संख्येयगुणाः सूक्ष्मेष्वोघतोऽपर्याप्तेभ्यः पर्याप्तकानां अपेक्षा और द्रव्य प्रदेश दोनों की अपेक्षा अल्प हैं ? कौन इनकी अपेक्षा बहुत है कौन इनकी अपेक्षा बराबर हैं ? और कौन इनकी अपेक्षा विशेषाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! सत्वत्थोवा बादर णिओया पज्जत्तगा दव्वट्टयाए, बादर णिगोदा अपज्जत्तगा दच्वट्टयाए असंखेज्जगुणा' हे गौतम ! बादर निगोद पर्याप्तक द्रव्य दृष्टि से सब से कम हैं क्योंकि ये प्रतिनियत देशवर्ती होते हैं । इनकी अपेक्षा अपर्याप्तक बादर निगोद हैं वे द्रव्य दृष्टि से असंख्यातगुणें अधिक हैं। क्योंकि एक एक पर्याप्त बादर की निश्रा से असंख्यात बादर निगोदों का उत्पात होता रहता है 'सुहुमणिओदा अपज्जत्तगा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुम णिओया पज्जत्तगा दच्वट्टयाए संखेज्जगुणा' इनकी अपेक्षा जो सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक जीव हैं वे द्रव्य दृष्टि से असंख्यातगुणें अधिक हैं इनकी अपेक्षा जो કેાની અપેક્ષાએ વધારે છે ? અને કાણ કાની ખરેખર છે ? અને કેણુ કેાના કરતાં विशेषाधि छे ? मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री ४ छे - 'गोयमा ! सव्वत्थोवा बादर णिओया पज्जत्तगा दव्वट्टयाए बादरणिगोदा अपज्जत्तगा दव्वट्टयाए असंखेज्ज गुणा' हे गौतम! महर निगोह पर्याप्त द्रव्य दृष्टिथी सौथी गोछा छे. કેમકે તેઓ પ્રતિ નિયત દેશમાં રહેનારા હેાય છે. તેના કરતાં જે અપર્યાપ્તક માદર નિગોદ છે. તે દ્રવ્યપણાથી અસંખ્યાતગણા વધારે છે. કેમકે એક એક પર્યાપ્તક ખાદરની નિશ્રાથી અસંખ્યાત માન્નુર નિગોદાના ઉત્પાત थ लय छे. 'सुहुमणिगोदा अज्जत्तगा दव्वट्टयाए अस खेज्जगुणा; सुहुमणिओया पज्जत्तगा दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा' तेना ४२ता ने सूक्ष्म निगोह अपर्याप्त જીવ છે તે દ્રવ્યપણાથી અસંખ્યાતગણા વધારે છે. તેના કરતાં જે સૂક્ષ્મ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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